मैं ही तेरा घर हूँ,
पर तू अब कम ही लौटता है,
तेरी साँसों में मेरी ख़ुशबू है,
मगर तेरी राहों में अब और ठिकाने हैं।
यहाँ दर्द भी तेरे नाम की रौशनी से जलते हैं,
आँसू भी तेरा चेहरा देखकर पिघल जाते हैं,
पर तू… तू उन्हें देखने कहाँ आता है?
हाँ… मैं ही तेरा घर हूँ,
टूटकर बिखरेगा तो यहीं सँवर जाएगा,
पर अब तेरा सुकून
किसी और की चौखट पर ठहरता है।
दुनिया तुझे चाहे जितना दूर ले जाए,
तेरे कदमों की आहट
आज भी मेरे दर पर दस्तक देती है,
मगर दरवाज़ा खोलते ही
सिर्फ़ तन्हाई भीतर आती है…
तेरा होना अब एक याद बन चुका है,
और मेरा होना—
तेरी मोहब्बत का सबूत नहीं,
तेरी बेरुख़ी की सज़ा है।
– Vivek Balodi