15 अगस्त को कई नगर निगमों द्वारा मीट की बिक्री और पशु वध पर रोक के आदेश, विपक्ष ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया।
मुख्य तथ्य
- GHMC ने 15 और 16 अगस्त को मीट दुकानों और स्लॉटरहाउस बंद रखने का आदेश दिया।
- AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने फैसले को असंवैधानिक बताया।
- महाराष्ट्र में 15 और 20 अगस्त को पशु वध और मीट बिक्री पर रोक।
- 20 अगस्त को जैन पर्व पर्युषण पड़ने से बैन का विस्तार।
- उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने राष्ट्रीय पर्वों पर ऐसे प्रतिबंध का विरोध किया।
विस्तृत रिपोर्ट
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देशभर में कई नगर निगमों द्वारा मीट की बिक्री और पशु वध पर रोक के आदेशों ने बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। विरोधियों का कहना है कि आज़ादी के दिन इस तरह के प्रतिबंध व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता पर हमला हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
विवाद की शुरुआत तब हुई जब ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (GHMC) ने 15 और 16 अगस्त को मीट दुकानों और स्लॉटरहाउस बंद रखने का आदेश जारी किया। 16 अगस्त को जन्माष्टमी का पर्व है। AIMIM प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस आदेश को खुलकर चुनौती दी और सवाल किया—“मीट खाने का स्वतंत्रता दिवस से क्या संबंध है?” उन्होंने इसे संविधान द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता, निजता, आजीविका, संस्कृति, पोषण और धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन बताया, खासकर ऐसे राज्य में जहां 99% आबादी मीट का सेवन करती है।
GHMC ने अपने आदेश में 1955 के GHMC एक्ट की धारा 533 (b) का हवाला देते हुए पुलिस कमिश्नरों को सूचना दी थी। इसी तरह की पाबंदियां देश के अन्य हिस्सों में भी लागू की गई हैं।
महाराष्ट्र में भी लागू बैन
छत्रपति संभाजीनगर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ने 15 अगस्त और 20 अगस्त को पशु वध और मीट बिक्री पर रोक लगाने का ऐलान किया है। 20 अगस्त जैन समुदाय के महत्वपूर्ण पर्व ‘पर्युषण’ के दौरान पड़ रहा है। निगम ने चेतावनी दी है कि उल्लंघन करने वालों पर महाराष्ट्र म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन एक्ट, 1949 के तहत कार्रवाई होगी।
अधिकारियों का कहना है कि यह परंपरा नई नहीं है, 1988 से हर साल प्रमुख धार्मिक और राष्ट्रीय अवसरों पर ऐसे आदेश जारी किए जाते रहे हैं। लेकिन इस बार इसे लेकर विरोध तेज है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने साफ कहा कि धार्मिक अवसरों पर बैन समझ में आता है, लेकिन राष्ट्रीय पर्वों जैसे 15 अगस्त या 26 जनवरी पर ऐसे आदेश उचित नहीं हैं। “बड़े शहरों में अलग-अलग धर्म और संस्कृति के लोग रहते हैं, इसलिए ऐसे प्रतिबंध असंगत हैं,” उन्होंने कहा।
यह विवाद एक बार फिर इस सवाल को खड़ा करता है कि राष्ट्रीय एकता और गर्व मनाने के लिए क्या खानपान की स्वतंत्रता पर पाबंदी सही है, या यह व्यक्तिगत अधिकारों पर अनावश्यक अंकुश है।