जॉन अब्राहम की तेहरान: दमदार मुद्दों पर भी क्यों अधूरी लगती है फिल्म?

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जियोपॉलिटिक्स और एक्शन का संगम दिखाने वाली तेहरान  सही सवाल तो उठाती है, लेकिन जवाब देने से कतराती नज़र आती है।

मुख्य तथ्य

  • तेहरान में जॉन अब्राहम ने स्पेशल सेल ऑफिसर राजीव कुमार का किरदार निभाया है।
  • फिल्म की शुरुआत में बड़ी भौगोलिक गलती – जॉर्जिया (देश) की जगह अमेरिकी राज्य जॉर्जिया का नक्शा दिखाया गया।
  • कहानी इज़राइल-ईरान संघर्ष की पृष्ठभूमि पर आधारित है, लेकिन फिल्म स्पष्ट राजनीतिक पक्ष लेने से बचती है।
  • जॉन अब्राहम का किरदार न्याय और देशभक्ति से प्रेरित है, लेकिन फिल्म का नैरेटिव ‘सुरक्षित’ राह अपनाता है।
  • आलोचकों का मानना है कि फिल्म मुद्दों को छूती है, पर गहराई से चर्चा करने का साहस नहीं दिखाती।


जॉन अब्राहम
की नई फिल्म तेहरान  रिलीज़ के साथ ही चर्चा का विषय बन गई है। यह फिल्म इज़राइल-ईरान संघर्ष की पृष्ठभूमि पर आधारित है और भारतीय ज़मीन पर हुए आतंकी हमले की कहानी से आगे बढ़ती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या फिल्म सच में उतनी गहरी और राजनीतिक रूप से साहसी है, जितनी बनने की कोशिश करती है?

फिल्म की शुरुआत ही एक बड़ी चूक से होती है। ओपनिंग वॉइसओवर में 2012 के हमलों का ज़िक्र किया जाता है, लेकिन जब नक्शा दिखाया जाता है, तो ‘जॉर्जिया’ देश की जगह अमेरिकी राज्य जॉर्जिया स्क्रीन पर आ जाता है। ऐसी गलती उस फिल्म की पहली छाप कमजोर कर देती है, जो खुद को इंटेलिजेंट थ्रिलर साबित करना चाहती है।

तेहरान  में जॉन अब्राहम स्पेशल सेल ऑफिसर राजीव कुमार बने हैं। जब भारतीय ज़मीन पर हुए हमले में एक मासूम बच्ची की जान जाती है, तो राजीव इसे व्यक्तिगत मिशन बना लेते हैं। वह सिर्फ अपराधियों को पकड़ना ही नहीं, बल्कि ईरान तक जाकर उन्हें सज़ा देने की ठानते हैं। इस सफर में वह न सिर्फ दुश्मन देशों बल्कि अपनी ही सरकार को भी नाराज़ कर बैठते हैं।

हालांकि, फिल्म का सबसे बड़ा विरोधाभास यही है कि यह असल मुद्दों को छूकर भी उनसे किनारा कर लेती है। इज़राइल-ईरान संघर्ष जैसे संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म में साफ राजनीतिक रुख की उम्मीद होती है, लेकिन तेहरान  बार-बार तटस्थ रहने की कोशिश करती है। यही वजह है कि फिल्म गहराई से बहस छेड़ने के बजाय एक ‘सुरक्षित थ्रिलर’ बनकर रह जाती है।

जॉन अब्राहम की स्क्रीन प्रेज़ेंस दमदार है। उनकी बॉडी लैंग्वेज, एक्शन और ‘देशभक्ति से प्रेरित’ किरदार प्रभाव छोड़ते हैं। लेकिन जब वही किरदार कहता है कि उसे किसी पक्ष से मतलब नहीं, तो दर्शक सोच में पड़ जाते हैं — आखिर ऐसी फिल्म किसके लिए और क्यों बनाई गई है?

बॉलीवुड में जहां कई स्टार्स राजनीतिक बयान देने से कतराते हैं, वहीं जॉन अब्राहम खुद को ‘एपॉलिटिकल’ दिखाकर एक संतुलन बनाए रखते हैं। शायद यही वजह है कि उनकी फिल्में अक्सर बड़े मुद्दों को छूती तो हैं, पर बहस को अधूरा छोड़ देती हैं। तेहरान  इसका ताज़ा उदाहरण है — एक ऐसी फिल्म जो देखने में रोचक है, लेकिन अंदर से खोखली लगती है।

 

 

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