अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक रिश्तों में एक बार फिर तनाव गहराता दिख रहा है। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटकनिक ने साफ चेतावनी दी है कि भारत को “अपने सबसे बड़े क्लाइंट” यानी अमेरिका का समर्थन करना होगा, वरना उसे 50% तक के टैरिफ का सामना करना पड़ेगा।
मुख्य तथ्य
- अमेरिकी वाणिज्य सचिव ने भारत से कहा—“सपोर्ट करो या 50% टैरिफ़ झेलो।”
- SCO समिट के बाद ट्रंप ने कहा, “भारत और रूस चीन के पाले में चले गए।”
- भारत पर दबाव—रूसी तेल खरीद बंद करो, BRICS से दूरी बनाओ।
- भारत बोला—ऊर्जा नीति राष्ट्रीय हित और बाज़ार की ज़रूरतों पर आधारित है।
- दोनों देशों के बीच नवंबर तक ट्रेड डील की उम्मीद, लेकिन बातचीत अटकी
अमेरिका और भारत के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव पर एक और बड़ा बयान सामने आया है। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटकनिक ने कहा है कि भारत को अगले एक-दो महीनों में “माफ़ी मांगते हुए” फिर से बातचीत की टेबल पर लौटना पड़ेगा। उनका दावा है कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और “कस्टमर हमेशा सही होता है।”
लटकनिक ने ब्लूमबर्ग टीवी से बातचीत में कहा—“भारत बाज़ार खोलना नहीं चाहता। अगर भारत रूसी तेल खरीदना और BRICS का हिस्सा बने रहना चाहता है, तो रहे। लेकिन या तो डॉलर और अमेरिका का समर्थन करो, या फिर 50% टैरिफ़ देने के लिए तैयार रहो। देखते हैं ये कितने दिन चलता है।”
यह बयान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस सोशल मीडिया पोस्ट के बाद आया है जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि SCO समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बैठक से “भारत और रूस चीन के खेमे में चले गए।”
भारत ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा है कि वह व्यापारिक बातचीत के लिए “निरंतर रूप से संलग्न” है। नई दिल्ली का कहना है कि ऊर्जा से जुड़े फ़ैसले राष्ट्रीय हित और बाज़ार की वास्तविकताओं पर आधारित हैं। भारत ने यह भी सवाल उठाया कि जब चीन सबसे बड़ा रूसी तेल ख़रीदार है तो केवल भारत पर ही अतिरिक्त टैरिफ क्यों लगाए गए।
इसी साल ट्रंप प्रशासन ने भारत पर रूसी तेल आयात जारी रखने की वजह से 50% टैरिफ़ लगा दिए थे। इसके बाद से ही दोनों देशों के रिश्तों में खटास बढ़ी है। अमेरिकी कैबिनेट के कई मंत्री भारत की नीतियों पर निशाना साध चुके हैं।
हालांकि भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में कहा था कि नवंबर तक अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर सहमति बनने की उम्मीद है। लेकिन 25 अगस्त को अमेरिकी वार्ताकारों का दौरा अचानक टल जाने से बातचीत अटक गई। भारत का कहना है कि 25% अतिरिक्त टैरिफ़ हटाए बिना कोई भी प्रगति संभव नहीं है।
यह स्थिति दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों पर गहरा असर डाल सकती है। जहां अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, वहीं भारत की ऊर्जा ज़रूरतें उसे रूस से खरीदारी करने के लिए मजबूर करती हैं। अब देखना होगा कि आने वाले हफ़्तों में नई दिल्ली और वॉशिंगटन किस रास्ते पर आगे बढ़ते हैं—टकराव या समझौते।