अमेरिका द्वारा भारत पर रूसी तेल खरीद को लेकर लगाए गए दंडात्मक टैरिफ के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ कर दिया है कि नई दिल्ली अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए मास्को से तेल खरीदना जारी रखेगा। उन्होंने कहा कि भारत के तेल आयात पूरी तरह आर्थिक और वाणिज्यिक हितों पर आधारित हैं।
मुख्य तथ्य
- अमेरिकी प्रशासन ने भारत पर 50% टैरिफ लगाया है।
- सीतारमण बोलीं– तेल खरीद पर फैसला भारत की आर्थिक ज़रूरतों पर होगा।
- GST सुधार से टैरिफ के असर को कम करने की तैयारी।
- 8 सितंबर को BRICS नेताओं की वर्चुअल बैठक बुलाएंगे ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला।
- अमेरिका ने BRICS को “एंटी-अमेरिकन” बताकर 10% अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दी।
भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में तनाव उस समय और गहरा गया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने पर भारत के खिलाफ 50% दंडात्मक टैरिफ लागू कर दिया। इसके बावजूद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को साफ कहा कि नई दिल्ली मास्को से कच्चा तेल खरीदना जारी रखेगा।
सीतारमण ने कहा कि भारत की ऊर्जा आवश्यकताएँ इतनी बड़ी हैं कि उसे वही स्रोत चुनना होगा जो दर, लॉजिस्टिक्स और विदेशी मुद्रा बचत के लिहाज से सबसे उपयुक्त हो। “चाहे वह रूसी तेल हो या कुछ और, यह हमारा निर्णय है कि हमें कहाँ से खरीदना है। यह पूरी तरह हमारी ज़रूरतों और आर्थिक हितों पर निर्भर करता है। हम इसे खरीदते रहेंगे,” उन्होंने CNN-News18 को दिए इंटरव्यू में कहा।
वित्त मंत्री ने यह भी बताया कि अमेरिकी टैरिफ का असर कुछ हद तक हाल ही में किए गए जीएसटी सुधारों से कम किया जा सकेगा। इन सुधारों के तहत कई वस्तुओं पर अप्रत्यक्ष कर दरों में कमी और सरलीकरण किया गया है। इसके अलावा सरकार उन सेक्टर्स के लिए विशेष उपाय भी तैयार कर रही है, जिन्हें अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर झेलना पड़ रहा है।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है और अपनी ज़रूरत का लगभग 88% हिस्सा आयात करता है। ऐसे में रूसी कच्चा तेल, जो अक्सर रियायती दर पर उपलब्ध होता है, भारत के लिए अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा बचत का साधन रहा है।
इसी बीच, ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा ने 8 सितंबर को BRICS नेताओं की वर्चुअल बैठक बुलाई है। इस बैठक में अमेरिकी टैरिफ पर सामूहिक प्रतिक्रिया और बहुपक्षीयता को समर्थन देने पर चर्चा होगी। भारत की ओर से इस बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर हिस्सा लेंगे।
दिल्ली का मानना है कि मौजूदा परिस्थिति में प्रधानमंत्री स्तर की बजाय विदेश मंत्री स्तर की भागीदारी अधिक उपयुक्त है, क्योंकि पश्चिमी देशों में BRICS और SCO जैसे मंचों को अक्सर “एंटी-वेस्टर्न” नज़रिए से देखा जाता है। भारत इन्हें “नॉन-वेस्टर्न ग्रुपिंग” कहता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने न केवल भारत और ब्राज़ील पर टैरिफ लगाया है, बल्कि BRICS को “एंटी-अमेरिकन” बताते हुए जुलाई में 10% अतिरिक्त शुल्क लगाने की भी धमकी दी थी। इसके अलावा उन्होंने ब्राज़ील को वैश्विक व्यापार युद्ध के बीच घसीटते हुए, देश की सुप्रीम कोर्ट पर भी दबाव बनाने की कोशिश की।
लूला पहले ही ट्रंप पर बहुपक्षीयता को कमजोर करने और एकतरफा फैसलों को थोपने का आरोप लगा चुके हैं। ट्रंप की इस नीति से भारत समेत कई देशों के लिए आर्थिक और रणनीतिक चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं।