अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार चर्चा उनके नोबेल शांति पुरस्कार को लेकर है। जहां एक ओर ट्रंप खुद इस सम्मान को पाने की संभावना को लेकर सतर्क नज़र आ रहे हैं, वहीं दुनिया भर के कई नेता और उद्योगपति उन्हें नामित करने की होड़ में हैं। सवाल यह है कि क्या वास्तव में ट्रंप शांति पुरस्कार के हकदार हैं या ये सिर्फ कूटनीतिक दबाव और राजनीतिक चापलूसी का हिस्सा है।
मुख्य तथ्य
- कई देशों के नेताओं और अमेरिकी रिपब्लिकन सांसदों ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया।
- इज़रायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने अब्राहम समझौते का श्रेय ट्रंप को दिया।
- पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव कम कराने के लिए भी ट्रंप का नाम आगे आया।
- अफ्रीकी देशों में शांति समझौते और एशियाई संघर्ष विराम में भी उनकी भूमिका बताई गई।
- ट्रंप खुद कहते हैं – “मैं ध्यान नहीं चाहता, सिर्फ जानें बचाना चाहता हूँ।”
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार की दौड़ में शामिल हो गया है। उन्होंने खुद भी कई बार इस प्रतिष्ठित सम्मान को पाने की इच्छा जाहिर की है। यहां तक कि उन्होंने नॉर्वे के वित्त मंत्री को कॉल कर सीधे इस पुरस्कार को लेकर बातचीत भी की थी। हालांकि ट्रंप ने सोशल मीडिया पर यह भी लिखा था कि “मैं चाहे कुछ भी कर लूं, मुझे नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा।” इसके बावजूद दुनियाभर से उनके समर्थन में आवाज़ें तेज़ हो रही हैं।
नोबेल शांति पुरस्कार दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड माना जाता है। किसी राष्ट्र प्रमुख से लेकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तक नामांकन कर सकते हैं, लेकिन विजेता का चयन नॉर्वे की संसद द्वारा चुनी गई पाँच सदस्यीय समिति करती है। यह पुरस्कार अगले महीने घोषित किया जाएगा।
जब ट्रंप से CBS News ने पूछा कि क्या वह इस पुरस्कार को लेकर उम्मीद कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा, “मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है। मैं सिर्फ युद्ध खत्म कर सकता हूं। मैं ध्यान नहीं चाहता, बस ज़िंदगियां बचाना चाहता हूं।”
अब सवाल यह है कि आखिर किन कारणों से दुनियाभर के नेता ट्रंप का नाम आगे बढ़ा रहे हैं?
ऑपरेशन वार्प स्पीड और कोविड-19 वैक्सीन
फाइज़र के सीईओ अल्बर्ट बौरला ने कहा कि महामारी के दौरान ट्रंप प्रशासन द्वारा शुरू किया गया “ऑपरेशन वार्प स्पीड” एक ऐतिहासिक सार्वजनिक स्वास्थ्य उपलब्धि थी। इस पहल के तहत mRNA वैक्सीन का तेजी से विकास और वितरण संभव हुआ। बौरला के अनुसार, यह उपलब्धि अपने आप में नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य है। रिपब्लिकन सीनेटर बिल कैसिडी ने भी इस पर सहमति जताई।
अब्राहम समझौते
इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने आधिकारिक तौर पर ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया। उन्होंने पत्र में लिखा कि 2020 में हुए अब्राहम समझौतों ने मध्य पूर्व में ऐतिहासिक बदलाव लाए। इन समझौतों के तहत इज़राइल और कई अरब देशों — जैसे संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मोरक्को — के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित हुए। नेतन्याहू के अनुसार, इस पहल ने क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया।
भारत-पाकिस्तान संबंध
पाकिस्तान सरकार ने भी ट्रंप को नामांकित किया। उनका तर्क था कि जब भारत और पाकिस्तान युद्ध के कगार पर थे, तब ट्रंप ने कूटनीतिक सक्रियता दिखाते हुए स्थिति को नियंत्रित किया और संघर्षविराम सुनिश्चित कराया। पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे पर ट्रंप के सहयोग प्रस्ताव की भी सराहना की।
हालांकि भारत ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि इस मध्यस्थता में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं रही। रिपोर्टों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ट्रंप को नामित न करने से दोनों नेताओं के रिश्तों में कुछ तनाव आया। हालांकि ट्रंप ने व्हाइट हाउस में कहा, “मैं हमेशा मोदी का दोस्त रहूंगा। भारत और अमेरिका का खास रिश्ता है। कभी-कभी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं।”
कंबोडिया-थाईलैंड संघर्ष
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेत ने अगस्त में ट्रंप को नामांकित करते हुए कहा कि उनकी मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच संभावित विनाशकारी संघर्ष टल गया। ट्रंप ने यहां तक धमकी दी थी कि अगर लड़ाई नहीं रुकी तो अमेरिका व्यापारिक संबंध तोड़ देगा।
आर्मेनिया-अज़रबैजान शांति समझौता
ट्रंप ने आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच दशकों से चले आ रहे संघर्ष को खत्म करने के लिए भी समझौता कराया। इसके तहत दोनों देशों ने लड़ाई रोकने और अमेरिका को क्षेत्र में एक ट्रांजिट कॉरिडोर के विकास अधिकार देने पर सहमति जताई।
अफ्रीका में पहल
व्हाइट हाउस में जुलाई में पांच अफ्रीकी नेताओं के साथ हुई बैठक में ट्रंप की भूमिका की सराहना की गई। रवांडा और कांगो के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद अफ्रीकी नेताओं ने कहा कि ट्रंप इस पुरस्कार के हकदार हैं।