भय अब मुझसे कोसों दूर जा चुका है,
तुम्हारे झूठ और छल से उपजा डर
अपनी अंतिम साँस ले चुका है।
मैं स्मृतियों का अथाह समंदर हूँ,
जहाँ हर लहर तुम्हारे किए अपराधों की गवाही देती है।
मेरे शब्दों ने तुम्हारी ख़ामोशी के अँधेरे को चीर दिया है,
अब छुपाने को तुम्हारे पास कोई परछाईं बाक़ी नहीं।
मैं उस मोड़ पर खड़ा हूँ
जहाँ हार और जीत की तुम्हारी चालें
सिर्फ़ खोखले अर्थ बनकर रह गई हैं।
मैं पतन नहीं,
बल्कि तुम्हारे पतन की राख से जन्मा उजास हूँ।
मैं उस अंधेरी रूह का दीया हूँ—
जिसे तुम्हारी सियासत की आँधियाँ भी बुझा नहीं सकतीं।
हाँ… मैं वही प्रकाश हूँ
जिसे तुम्हारी रात निगलना चाहती है,
पर हर बार और प्रखर होकर लौट आता हूँ।
मैं वही स्वर हूँ
जो तुम्हारी लाठी-गोलियों से नहीं मरता,
बल्कि हर तन्हाई से, हर चीख़ से जन्म लेता है।
मैं अंत नहीं,
बल्कि तुम्हारे अंत से उपजा नया आरम्भ हूँ।
मैं वही सच्चाई हूँ
जिसे तुम्हारी कोई सत्ता, कोई अँधेरा
कभी मिटा नहीं सकता।
-Vivek Balodi