‘Jugnuma: The Fable’ रिव्यू – पहाड़ों में जादुई यथार्थ और मनोज बाजपेयी का नया जादू

राम रेड्डी की फिल्म ‘जुगनुमा’ पहाड़ी जीवन, रिश्तों और जादुई यथार्थ के संगम को बारीकी से पेश करती है।

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Jugnuma The Fable रिव्यू: मनोज बाजपेयी का नया जादू

कुछ फिल्में धीरे-धीरे आपको अपने जादू में बांध लेती हैं। राम रेड्डी की नई फिल्म ‘Jugnuma: The Fable’ (जुगनुमा: द फेबल) भी वैसी ही है। उत्तराखंड की पहाड़ियों में 1989 की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म आम जीवन और रहस्यमयी कल्पना को खूबसूरती से जोड़ती है।

मुख्य तथ्य

  • फिल्म का निर्देशन किया है राम रेड्डी ने, जिन्होंने ‘Tithi’ से डेब्यू किया था।
  • मुख्य भूमिकाओं में मनोज बाजपेयी, दीपक डोबरियाल, प्रियंका बोस और तिलोत्तमा शोमे हैं।
  • कहानी 1989 के उत्तराखंड के ऊपरी इलाकों में सेट है।
  • फिल्म जादुई यथार्थ, पारिवारिक रिश्तों और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को जोड़ती है।
  • सिनेमैटोग्राफी की कमान सुनील बोरकर के पास रही।

‘Jugnuma: The Fable’ ऐसी फिल्म है जो धीमे-धीमे अपने दर्शकों को अपने प्रभाव में ले लेती है। 1989 के उत्तराखंड की ऊंची पहाड़ियों में सेट यह कहानी एक तरफ साधारण जीवन की झलक देती है, तो दूसरी तरफ रहस्यमयी घटनाओं और जादुई यथार्थ का रंग भरती है।

फिल्म के केंद्र में है देव (मनोज बाजपेयी), जो इलाके के सबसे बड़े सेब के बाग का मालिक है। उसकी चिंता तब बढ़ जाती है जब बगीचे का एक पेड़ रहस्यमय ढंग से जल जाता है। उसका मैनेजर मोहन (दीपक डोबरियाल) भी हैरान है—क्या यह महज एक घटना है या किसी गहरी वजह का संकेत? क्या ग्रामीण कीटनाशकों के इस्तेमाल से नाराज़ हैं? या यह प्रकृति का संदेश है कि धरती के साथ छेड़छाड़ न की जाए?

कहानी यहीं खत्म नहीं होती। देव के घर के पास घुमंतू लोगों का एक समूह डेरा डालता है। वे बोलते नहीं, बल्कि गुनगुनाहट से संवाद करते हैं। उन्हीं में से एक घुड़सवार, देव की बेटी वन्या (हिरल सिद्दू) को आकर्षित करता है। क्या ये रहस्यमयी लोग बगीचों में लग रही आग के पीछे हैं?

फिल्म में सामाजिक और राजनीतिक परतें भी हैं। देव का अपने मज़दूरों से रिश्ता पीढ़ियों से जुड़ा है, लेकिन उसमें एक अहंकार झलकता है। पहाड़ों के मालिकाना हक पर सवाल उठता है—क्या ये सचमुच देव जैसे जमींदारों के हैं, या उन मेहनतकशों के जो पीढ़ियों से इन्हें सींच रहे हैं?

अभिनय की बात करें तो मनोज बाजपेयी का यह रोल उनके करियर की बेहतरीन परफॉरमेंस में से एक है। वे अपने किरदार में पूरी तरह ढल जाते हैं। दीपक डोबरियाल अपनी सहज और गहराई से भरी अदाकारी से कहानी को और मजबूत करते हैं। प्रियंका बोस घर-परिवार संभालने वाली नंदिनी के रूप में सादगी और मधुरता लेकर आती हैं। बच्चे भी शानदार अभिनय करते हैं।

राम रेड्डी का निर्देशन और सुनील बोरकर की सिनेमैटोग्राफी फिल्म को जादुई रूप देती है। कुछ दृश्य पूरी तरह काव्यात्मक लगते हैं—जैसे पहाड़ों पर फैला धुंध, जलते पेड़, और आकाश की ओर उड़ान भरने की चाह।

‘जुगनुमा’ असल में जुगनू (firefly) की तरह चमकती है। यह हमें याद दिलाती है कि कल्पना की शक्ति हमें हमारी सीमाओं से परे ले जा सकती है।

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