H-1B वीज़ा पर नई पाबंदी: सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे भारतीय

ट्रंप प्रशासन के नए नियमों से H-1B वीज़ा की लागत बढ़ी, भारतीय पेशेवरों पर सबसे बड़ा असर।

newsdaynight
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H-1B वीज़ा पर नई पाबंदी से भारतीयों को झटका

अमेरिका में H-1B वीज़ा पाने वाले पेशेवरों में भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के नए नियमों से अब यह वीज़ा काफी महंगा और चुनौतीपूर्ण हो गया है। कंपनियों को हर वीज़ा के लिए 1 लाख डॉलर सालाना चुकाने होंगे, जिससे भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स और कंपनियों पर भारी असर पड़ सकता है।

मुख्य तथ्य

  • 2015 से अब तक हर साल H-1B वीज़ा का 70% से ज्यादा हिस्सा भारतीयों को मिला।
  • ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीज़ा की सालाना लागत $100,000 तय की।
  • वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लट्निक ने H-1B प्रोग्राम को “स्कैम” बताया।
  • 2023 में 70% भारतीय H-1B प्रोफेशनल्स की सैलरी $1 लाख से कम थी।
  • अमेरिकी उद्योग जगत का दावा: H-1B वीज़ा से स्किल गैप को पूरा किया जा सकता है।

अमेरिका में काम करने के इच्छुक भारतीय पेशेवरों के लिए बड़ी चुनौती सामने आ गई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने H-1B वीज़ा की लागत को बढ़ाकर 1 लाख डॉलर सालाना कर दिया है। यह कदम उन भारतीयों के लिए बड़ा झटका है, जो अमेरिकी आईटी कंपनियों या भारतीय दिग्गज कंपनियों जैसे इंफोसिस और टीसीएस के जरिए वहां काम करना चाहते हैं।

नया नियम ऐसे समय में आया है जब अमेरिका में इमिग्रेशन बहस अपने चरम पर है। ट्रंप सरकार के करीबी अधिकारी हॉवर्ड लट्निक ने हाल ही में H-1B वीज़ा को “धोखा” करार दिया और कहा कि अमेरिकी कंपनियों को स्थानीय कर्मचारियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। उनका तर्क है कि विदेशी वर्कर्स कम वेतन पर नौकरी ले लेते हैं, जिससे अमेरिकी मजदूरों की नौकरियां और वेतन प्रभावित होते हैं।

हालांकि इस कार्यक्रम के समर्थक भी कम नहीं हैं। टेस्ला के पूर्व प्रमुख एलन मस्क और भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी जैसे लोग H-1B को अमेरिका के लिए टैलेंट लाने वाला सबसे अहम साधन मानते हैं। उनका कहना है कि बेहतरीन इंजीनियरिंग टैलेंट की कमी को यह प्रोग्राम पूरा करता है।

डेटा से भी पता चलता है कि भारतीय H-1B वीज़ा पर हावी हैं। 2015 से हर साल 70% से ज्यादा वीज़ा भारतीयों को मिले हैं, जबकि चीन दूसरे नंबर पर है, लेकिन केवल 12-13% हिस्सेदारी के साथ। हालांकि, एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में करीब 70% भारतीय H-1B वीज़ा धारकों की सैलरी 1 लाख डॉलर से कम थी। यह औसत अमेरिकी आईटी पेशेवरों की तुलना में कम है, जिनकी मीडियन सैलरी $1,04,420 थी।

उद्योग जगत का मानना है कि वेतन बाजार की मांग और आपूर्ति पर आधारित होता है और H-1B वीज़ा अमेरिका की स्किल कमी को पूरा करने में मदद करता है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारत और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा STEM ग्रेजुएट तैयार करते हैं, जबकि अमेरिका इस मामले में काफी पीछे है। यही कारण है कि अमेरिका की तकनीकी प्रगति में भारतीय पेशेवरों की भूमिका अहम बनी हुई है।

 

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