अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा H-1B वीज़ा पर $100,000 शुल्क लगाने की घोषणा के बाद भारतीय आईटी पेशेवरों और कंपनियों में हड़कंप मच गया। हालांकि, व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया है कि यह शुल्क केवल नए वीज़ा आवेदनों पर लागू होगा, न कि वर्तमान वीज़ा धारकों या उनके नवीनीकरण पर।
मुख्य तथ्य
- व्हाइट हाउस: $100,000 शुल्क वन-टाइम फीस होगी, केवल नए H-1B वीज़ा पर लागू।
- वर्तमान H-1B वीज़ा धारकों और नवीनीकरण पर कोई असर नहीं।
- 72% H-1B वीज़ा भारतीयों को जारी किए जाते हैं, असर सबसे ज्यादा भारत पर।
- भारत ने अमेरिका से कहा, यह फैसला परिवारों पर मानवीय असर डालेगा।
- नया “गोल्ड कार्ड” प्रोग्राम भी लॉन्च—$1 मिलियन देकर ग्रीन कार्ड का रास्ता।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक नया आदेश जारी कर H-1B वीज़ा शुल्क को $100,000 (करीब ₹88 लाख) तक बढ़ाने की घोषणा की। यह कदम उन भारतीय पेशेवरों और आईटी कंपनियों पर सीधा असर डाल सकता है, जो हर साल हजारों कर्मचारियों को अमेरिका भेजते हैं। हालांकि, शनिवार को व्हाइट हाउस प्रेस सेक्रेटरी कैरोलाइन लेविट ने स्पष्ट किया कि यह फीस सिर्फ नए वीज़ा आवेदनों पर लागू होगी और वन-टाइम फीस होगी।
लेविट ने कहा, “जो लोग पहले से H-1B वीज़ा पर हैं और अमेरिका से बाहर हैं, वे सामान्य रूप से लौट सकते हैं। उनसे $100,000 की फीस नहीं ली जाएगी। यह प्रावधान केवल अगले लॉटरी चक्र में नए आवेदन करने वालों पर लागू होगा।” इस स्पष्टीकरण ने फिलहाल उन हजारों वीज़ा धारकों को राहत दी है जो परिवार या काम के सिलसिले में अमेरिका से बाहर थे।
भारत H-1B वीज़ा का सबसे बड़ा लाभार्थी है। अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच जारी करीब 4 लाख वीज़ाओं में से 72% भारतीयों को मिले। केवल शीर्ष चार आईटी कंपनियां—इन्फोसिस, टीसीएस, एचसीएल और विप्रो—ने इस अवधि में लगभग 20,000 कर्मचारियों के लिए H-1B वीज़ा की मंजूरी हासिल की। ऐसे में यह फैसला भारतीय उद्योग और पेशेवरों के लिए गहरी चिंता का विषय बन गया है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस कदम पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि इसका मानवीय असर पड़ेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा, “यह निर्णय परिवारों के लिए गंभीर व्यवधान पैदा कर सकता है। हम उम्मीद करते हैं कि अमेरिकी अधिकारी इस पर संवेदनशीलता से विचार करेंगे।” उन्होंने आगे कहा कि भारत और अमेरिका की इंडस्ट्री का साझा हित नवाचार और तकनीकी सहयोग में है, जिसे ध्यान में रखते हुए नीतियों का आकलन किया जाना चाहिए।
ट्रंप प्रशासन का दावा है कि H-1B वीज़ा प्रणाली का दुरुपयोग आईटी आउटसोर्सिंग कंपनियों ने किया है, जिससे अमेरिकी कामगारों को नुकसान हुआ। आदेश में कहा गया कि कई कंपनियों ने सस्ते विदेशी कामगारों को लाकर घरेलू कर्मचारियों की नौकरियां छीन लीं। आंकड़ों के अनुसार, कंप्यूटर और गणित से जुड़े कामों में विदेशी कामगारों का हिस्सा 2000 में 17.7% था, जो 2019 तक बढ़कर 26.1% हो गया।
ट्रंप ने कहा कि नई नीति का मकसद है “केवल बेहतरीन प्रतिभाओं” को अमेरिका में लाना। साथ ही, सरकार ने “गोल्ड कार्ड प्रोग्राम” भी शुरू किया है, जिसके तहत कोई भी विदेशी व्यक्ति $1 मिलियन (या कंपनी स्पॉन्सरशिप पर $2 मिलियन) देकर अमेरिका में ग्रीन कार्ड की तेज़ राह पा सकता है।
हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह फैसला अमेरिकी कंपनियों को महंगे विकल्पों की ओर धकेल सकता है और वे उच्च मूल्य वाले प्रोजेक्ट्स को भारत या अन्य देशों में शिफ्ट कर सकती हैं। वहीं, भारत का मानना है कि “लोग-से-लोग संबंध और कुशल प्रतिभा का आदान-प्रदान दोनों देशों की साझेदारी की असली ताकत है।”


