SIR को लेकर बंगाल के मजदूरों में मची अफरा-तफरी

केरल से मुंबई तक फैली चिंता — मतदाता सूची से नाम छूटने का डर, आर्थिक मजबूरी बनी बड़ी रुकावट

newsdaynight
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SIR से घबराए बंगाल के मजदूर, मतदाता सूची से नाम छूटने का डर

पश्चिम बंगाल में Special Intensive Revision (SIR) यानी विशेष मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया शुरू होते ही देशभर में फैले बंगाली प्रवासी मजदूरों में चिंता बढ़ गई है। केरल, मुंबई, गुजरात और बेंगलुरु में काम कर रहे हजारों श्रमिक अपने गांव लौटने की दुविधा में हैं — लौटें तो रोज़गार छूटे, न लौटें तो वोटर लिस्ट से नाम।

मुख्य तथ्य

  • 27 अक्टूबर: चुनाव आयोग ने 12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में SIR की घोषणा की।
  • 4 नवंबर–4 दिसंबर: नामांकन फॉर्म भरने की अवधि तय की गई।
  • 9 दिसंबर: ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी होगी, 7 फरवरी 2026 को अंतिम सूची।
  • प्रवासी मजदूर आर्थिक तंगी और दस्तावेज़ी दिक्कतों से जूझ रहे हैं।
  • कई संगठन श्रमिकों को ऑनलाइन आवेदन और दस्तावेज़ जमा करने में मदद कर रहे हैं।

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष संशोधन (SIR) की घोषणा के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में काम कर रहे प्रवासी मजदूरों में बेचैनी फैल गई है। चुनाव आयोग ने 27 अक्टूबर को इस प्रक्रिया का शेड्यूल जारी किया, जिसके तहत 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक नामांकन फॉर्म जमा किए जाएंगे। ड्राफ्ट मतदाता सूची 9 दिसंबर को प्रकाशित होगी और अंतिम सूची 7 फरवरी 2026 को जारी की जाएगी।

केरल के एर्नाकुलम जिले के अंगमाली में काम करने वाले 28 वर्षीय जैरुल मंडल के लिए यह समय बेहद मुश्किल है। परिवार से लगातार फोन आ रहे हैं कि वे घर लौटें और नामांकन कराएं। लेकिन जैरुल के पास टिकट के पैसे नहीं हैं। “अगर अब नहीं गए तो नाम छूट जाएगा,” वे कहते हैं।

इसी तरह, कोच्चि में काम करने वाले हबीबुल्ला बिस्वास की भी यही कहानी है। वे अभी हाल ही में दुर्गा पूजा मनाकर लौटे हैं, लेकिन अब फिर घर जाने की चिंता सता रही है। “बारिश से काम बंद था, अब फिर शुरू हुआ है। इतने कम समय में दोबारा जाना मुश्किल है,” वे बताते हैं।

मुंबई के मलाड में काम करने वाले मसीबुर मलिक भी परेशान हैं। परिवार के पांच सदस्यों का खर्च वही उठाते हैं और सबसे बड़ी बेटी विशेष रूप से सक्षम है। “अगर अभी घर जाऊँ तो काम से छुट्टी और मजदूरी दोनों कटेगी,” वे कहते हैं। उनके रिश्तेदारों ने फिलहाल दस्तावेज़ों की फोटो भेजने की सलाह दी है।

कुछ मजदूरों ने राजनीतिक दलों से मदद की उम्मीद जताई है। बेंगलुरु के 58 वर्षीय शेख शहज़ादा कहते हैं, “पार्टी के लोग नाम दर्ज कराने में मदद करेंगे। हम 80 साल से वोटर हैं, लेकिन इस बार डर है कि कोई गड़बड़ी न हो।”

गुजरात में हालांकि राहत की स्थिति है। राजकोट बंगाल यंग स्टार ग्रुप के अध्यक्ष आलोकनाथ शॉ बताते हैं कि “कई ब्लॉक लेवल ऑफिसरों (BLO) ने साफ किया है कि श्रमिकों को बंगाल लौटने की ज़रूरत नहीं, उनके रिश्तेदार दस्तावेज़ जमा कर सकते हैं।” अहमदाबाद में सामस्त बंगाली समाज संघ के अध्यक्ष अब्दुल रऊफ याकूब शेख ने बताया कि जो लोग स्थायी रूप से गुजरात में रहना चाहते हैं, वे पुराने वोटर कार्ड जमा करके यहीं नया कार्ड बनवा सकते हैं।

हालांकि, भ्रम की स्थिति भी बनी हुई है। मुंबई के अंबुजवाड़ी में रहने वाले अमल बिस्वास हैरान हैं कि उनकी पत्नी को पश्चिम बंगाल के ठाकुरनगर से दस्तावेज़ जमा करने का नोटिस क्यों आया। “हम 2002 से मुंबई में हैं और हमारे सारे दस्तावेज़ यहीं के हैं,” वे कहते हैं।

SIR की इस प्रक्रिया ने एक बार फिर देशभर में फैले प्रवासी श्रमिकों की राजनीतिक पहचान और मतदान अधिकार को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या तकनीकी विकल्प और ऑनलाइन सुविधाएँ उन्हें सशक्त बना पाएंगी, या वे फिर से इस प्रणाली में छूट जाएंगे?

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