डिजिटल गोल्ड की आसान खरीद, छोटा टिकट साइज और स्टोरेज की झंझट न होने की वजह से पिछले एक साल में लाखों लोग ऑनलाइन गोल्ड की ओर मुड़े हैं। लेकिन अब भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Sebi) ने साफ चेतावनी दी है कि ज़्यादातर डिजिटल/ई-गोल्ड स्कीमें अनरेगुलेटेड हैं और इनमें निवेश करने वालों को कोई इन्वेस्टर प्रोटेक्शन नहीं मिलेगा। सेबी का कहना है कि अगर काउंटर पार्टी डिफॉल्ट कर दे, तो आपका पैसा फंस सकता है।
- डिजिटल गोल्ड यानी बिना सोना लिए ऑनलाइन गोल्ड खरीदना; इसका दाम फिजिकल गोल्ड से लिंक्ड होता है।
- सेबी ने कहा: ये प्रोडक्ट न तो सिक्योरिटी हैं, न ही रेगुलेटेड कमोडिटी डेरिवेटिव।
- अनरेगुलेटेड होने से काउंटर पार्टी और ऑपरेशनल रिस्क काफी ज़्यादा हैं।
- सेबी ने गोल्ड ETF, EGR, कमोडिटी डेरिवेटिव और SGB जैसे रेगुलेटेड विकल्प चुनने की सलाह दी।
- पिछले एक साल में सोने की कीमत 59% तक बढ़ने से डिजिटल गोल्ड की पॉपुलैरिटी तेज़ हो गई है।
डिजिटल गोल्ड को पिछले कुछ सालों में एक “स्मार्ट, मॉडर्न और झंझटरहित” निवेश विकल्प के रूप में पेश किया गया है। मोबाइल ऐप, पेमेंट वॉलेट, ज्वेलर्स के पोर्टल और यहां तक कि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स भी इसे प्रमोट कर रहे हैं। लेकिन मार्केट रेगुलेटर Sebi ने अब इस ट्रेंड को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है। सेबी का कहना है कि डिजिटल गोल्ड/ई-गोल्ड प्रोडक्ट्स को अक्सर फिजिकल गोल्ड के विकल्प के तौर पर बेचा जा रहा है, जबकि वे किसी नियामक के सीधे दायरे में नहीं आते।

डिजिटल गोल्ड का बेसिक आइडिया यह है कि आप सोना “खरीदते” हैं, लेकिन उसे अपने पास फिजिकली नहीं रखते। प्लेटफॉर्म आपकी तरफ से इसे स्टोर करने का दावा करता है और आपको ऑनलाइन बैलेंस दिखता रहता है। कई प्लेटफॉर्म कहते हैं कि चाहें तो बाद में आप इसे कॉइन, बार या ज्वेलरी के रूप में रीडीम कर सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह बताई जाती है कि आप बहुत छोटी रकम से भी गोल्ड लेना शुरू कर सकते हैं और कभी भी उसे बेच सकते हैं।
लेकिन सेबी ने साफ कहा है कि यह सुविधा जितनी आसान दिखती है, उतनी सुरक्षित नहीं। सेबी के मुताबिक, ऐसे डिजिटल गोल्ड प्रोडक्ट्स न तो नोटिफाइड सिक्योरिटीज़ हैं, न ही कमोडिटी डेरिवेटिव के तौर पर रेगुलेट होते हैं। यानी अगर प्लेटफॉर्म बंद हो जाए, सोना वास्तव में स्टोर न किया गया हो या काउंटर पार्टी पैसे/गोल्ड देने से इनकार कर दे, तो आपके पास सेबी के इन्वेस्टर प्रोटेक्शन मैकेनिज़्म का सहारा नहीं होगा।
पिछले एक साल में MCX स्पॉट गोल्ड की कीमत ₹76,577 प्रति 10 ग्राम से बढ़कर ₹1.22 लाख प्रति 10 ग्राम तक चली गई — करीब 59% की छलांग। इतनी तेज़ बढ़त के बाद लोग “अब भी गोल्ड में एंट्री” करने का रास्ता तलाश रहे हैं। डिजिटल गोल्ड उनके लिए आसान दरवाज़ा बन गया। पर यही तेज़ी सेबी के अलर्ट की एक बड़ी वजह भी है: तेज़ी के दौर में अक्सर अनरेगुलेटेड प्रोडक्ट सबसे ज़्यादा बिकते हैं।
सेबी ने यह भी बताया कि कई डिजिटल/ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स इन प्रोडक्ट्स को इस तरह पेश कर रहे हैं जैसे वे पूरी तरह सेफ हों, जबकि असलियत यह है कि इनमें काउंटर पार्टी रिस्क सबसे बड़ा खतरा है। एक मार्केट एक्सपर्ट के शब्दों में, “डिजिटल गोल्ड एक तरह का ओवर-द-काउंटर ETF जैसा है। चूंकि यह एक्सचेंज या क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के जरिए सेटल नहीं होता, इसलिए डिफॉल्ट का रिस्क बना रहता है — यही बात सेबी को चिंता में डाल रही है।”
तो फिर क्या चुने निवेशक?
सेबी ने निवेशकों को कहा है कि अगर उन्हें गोल्ड में एक्सपोज़र लेना ही है, तो वे रेगुलेटेड रास्ता चुनें। इसके लिए तीन-चार साफ विकल्प पहले से मौजूद हैं:
- Gold ETFs (म्यूचुअल फंड के जरिए)
- Sebi-रेगुलेटेड कमोडिटी डेरिवेटिव्स (MCX, NSE पर)
- Electronic Gold Receipts (EGRs)
- और गोल्ड से अलग, Sovereign Gold Bonds (SGBs) जो सरकार की तरफ से आते हैं
इन रेगुलेटेड प्रोडक्ट्स में ट्रेडिंग एक्सचेंज और क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के जरिए होती है। वहां मार्जिन, रिस्क मैनेजमेंट, डेली मार्क-टू-मार्केट, और डिफॉल्ट गारंटी जैसे फ्रेमवर्क होते हैं, इसलिए किसी एक पार्टी के भाग जाने से आपका पैसा डूबता नहीं।
Kotak Securities के कमोडिटी और करंसी हेड अनिंद्य बनर्जी के मुताबिक, रेगुलेटेड एक्सचेंजों पर ट्रेड होने वाले कॉन्ट्रैक्ट्स में पारदर्शी प्राइसिंग, रोज़ का सेटलमेंट और स्ट्रिक्ट ओवरसाइट होता है, इसलिए ये डिजिटल गोल्ड की तुलना में कहीं ज़्यादा सेफ और एफिशिएंट हैं।


