दक्षिण कश्मीर में एक दर्दनाक घटना ने लोगों को स्तब्ध कर दिया है। 55 वर्षीय ड्राई-फ्रूट व्यापारी बिलाल अहमद वानी, जिन्हें पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया था, ने अगले ही दिन खुद को आग लगा ली। 70% से अधिक झुलसने के बाद श्रीनगर के SMHS अस्पताल में उनकी मौत हो गई।
मुख्य तथ्य
- 55 वर्षीय बिलाल वानी को शनिवार को पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा गया था।
- अगले दिन सुबह उन्होंने पेट्रोल छिड़ककर खुद को आग लगा ली।
- SMHS अस्पताल, श्रीनगर में 70% से अधिक जलने से उनकी मौत हुई।
- उनके बेटे जासिर और भाई नबील पहले से ही पुलिस हिरासत में थे।
- पुलिस का दावा—“कुलगाम पुलिस ने नहीं बुलाया, सिर्फ विवरण लिया गया था।”
दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में रविवार को हुई एक बेहद दुखद घटना ने पूरे क्षेत्र में चिंता और बेचैनी बढ़ा दी है। 55 वर्षीय ड्राई-फ्रूट व्यापारी बिलाल अहमद वानी, जिन्होंने रविवार सुबह खुद को आग लगा ली थी, सोमवार को श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल (SMHS) में दम तोड़ दिया। अधिकारियों के अनुसार वानी के शरीर पर 70% से अधिक गंभीर जलन थी।
यह घटना उस समय सामने आई जब वानी को शनिवार को पुलिस स्टेशन बुलाया गया था। परिवार का कहना है कि वह पूरा दिन पुलिस स्टेशन में रहे और रात लगभग 9 बजे भारी तनाव में घर लौटे। एक रिश्तेदार ने कहा—
“वह चुप थे, किसी से बात नहीं की। सुबह उठकर बाहर गए और कार से पेट्रोल ले आए… फिर खुद पर छिड़क लिया।”
घटना के समय घरवाले कुछ समझ पाते, इससे पहले ही आग की लपटों ने सब कुछ बदल दिया। स्थानीय लोग उन्हें तत्काल अस्पताल लेकर गए, लेकिन उनकी स्थिति बेहद गंभीर थी।
बेटा और भाई पुलिस हिरासत में, परिवार पर मानसिक बोझ
बिलाल के बेटे जासिर अल्ताफ और भाई नबील अहमद पहले से ही पुलिस हिरासत में थे। अधिकारियों के मुताबिक जासिर एक स्नातक छात्र है जबकि नबील एक शिक्षक हैं।
परिवार का कहना है कि इससे वानी मानसिक रूप से बेहद परेशान थे। शनिवार को पुलिस ने उनसे पूछा था कि क्या उन्होंने डॉ. राथर की हाल में हुई शादी में भाग लिया था। बताया जाता है कि राथर उसी इलाके के रहने वाले थे और स्थानीय लोग उन्हें डॉक्टर होने की वजह से जानते थे।
एक रिश्तेदार ने बताया—
“हम उसे जानते हैं, वह पड़ोसी है। लोग इलाज के लिए उसके पास जाते थे। शायद इसीलिए पुलिस ने पूछताछ की होगी।”
पुलिस ने मामले में अपनी भूमिका से किया इनकार
कुलगाम के एसपी अन्नायत अली चौधरी ने रविवार को दावा किया कि वानी को उनकी ओर से पूछताछ के लिए नहीं बुलाया गया था।
उन्होंने कहा—
“जब उसके बेटे को उठाया गया था, तब हमने उससे कुछ विवरण पूछे थे और उसी समय उसे घर भेज दिया था। उनका कोई भी सदस्य कुलगाम पुलिस की हिरासत में नहीं है।”
पुलिस के इन दावों ने मामले को और जटिल बना दिया है, क्योंकि परिवार के बयान इसके उलट बताते हैं कि वानी को शनिवार को काजीगुंड पुलिस स्टेशन में पेश होने को कहा गया था और फिर उन्हें श्रीनगर ले जाया गया।
महबूबा मुफ्ती ने उठाया सवाल—‘युवाओं को अंधेरी राह पर धकेला जा रहा है’
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने घटना को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि “युवाओं को बिना जांच-पड़ताल के उठाने” जैसे कदम उन्हें “अंधेरी राहों पर धकेल सकते हैं।”
उनका बयान कश्मीर में मौजूदा सुरक्षा वातावरण पर एक बड़ा सवाल उठाता है, खासकर तब जब एक आम नागरिक मानसिक दबाव के चलते ऐसा कठोर कदम उठाने को मजबूर हो गया।
इलाके में तनाव और शोक
घटना के बाद दक्षिण कश्मीर में लोगों में रोष और दुःख है। कई स्थानीय लोग पूछताछ प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर सवाल उठाते नजर आए। परिवार के सदस्य लगातार यही कहते रहे कि वानी “बेहद तनाव में” थे और पूछताछ के दौरान मानसिक रूप से टूट गए थे।
इस घटना ने फिर एक बार यह बहस छेड़ दी है कि पूछताछ की प्रक्रिया के दौरान संवेदनशील नागरिकों का मानसिक स्वास्थ्य किस तरह प्रभावित होता है, और क्या जांच एजेंसियों को ऐसे मामलों में अधिक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।


