“मेरा नाम विवेक बलोदी है। मैं विज्ञान के तर्क और साहित्य की संवेदना के बीच सेतु बनाने का एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ। पेशे से इंजीनियर हूँ, पर स्वभाव से एक राही—जो विज्ञान की दुनिया से निकलकर साहित्य की गलियों में सुकून तलाशता है। इंजीनियरिंग ने मुझे दुनिया का ढांचा देखना सिखाया, तो कविता ने उस ढांचे के भीतर बसने वाले इंसान को महसूस करना। मेरे लिए कविता मात्र कल्पना नहीं, बल्कि शोर के बीच रूह की एक पुकार है। मेरी रचनाओं में आपको समाज की कड़वाहट, प्रेम की कोमलता और मानवीय संघर्ष के वे मौन स्वर सुनाई देंगे, जो अक्सर दुनिया की भीड़ में कहीं खो जाते हैं। मेरी इस काव्य-यात्रा में आपका हृदय से स्वागत है।”
“मेरा नाम विवेक बलोदी है। मैं विज्ञान के तर्क और साहित्य की संवेदना के बीच सेतु बनाने का एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ। पेशे से इंजीनियर हूँ, पर स्वभाव से एक राही—जो विज्ञान की दुनिया से निकलकर साहित्य की गलियों में सुकून तलाशता है। इंजीनियरिंग ने मुझे दुनिया का ढांचा देखना सिखाया, तो कविता ने उस ढांचे के भीतर बसने वाले इंसान को महसूस करना। मेरे लिए कविता मात्र कल्पना नहीं, बल्कि शोर के बीच रूह की एक पुकार है। मेरी रचनाओं में आपको समाज की कड़वाहट, प्रेम की कोमलता और मानवीय संघर्ष के वे मौन स्वर सुनाई देंगे, जो अक्सर दुनिया की भीड़ में कहीं खो जाते हैं। मेरी इस काव्य-यात्रा में आपका हृदय से स्वागत है।”