न्यूज़ीलैंड में सिख नगर कीर्तन पर ‘हाका’ विरोध, विवाद क्यों?

आप्रवासन, राजनीति और धार्मिक स्वतंत्रता पर तेज़ हुई बहस

Virat Bisht
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न्यूज़ीलैंड में सिख नगर कीर्तन पर हाका विरोध

न्यूज़ीलैंड के साउथ ऑकलैंड में सिख समुदाय के नगर कीर्तन के दौरान पारंपरिक हाका नृत्य के ज़रिए हुए विरोध ने अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींच लिया है। इस घटना पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान सहित कई नेताओं ने प्रतिक्रिया दी है। मामला अब केवल एक स्थानीय विरोध तक सीमित नहीं, बल्कि आप्रवासन, धार्मिक स्वतंत्रता और विदेशी राजनीतिक मुद्दों के आयात पर बहस का रूप ले चुका है।

मुख्य तथ्य

  • साउथ ऑकलैंड के मनुरेवा इलाके में सिख नगर कीर्तन का विरोध
  • विरोध के लिए माओरी समुदाय के पारंपरिक ‘हाका’ नृत्य का प्रयोग
  • न्यूज़ीलैंड पुलिस ने स्थिति बिगड़ने से पहले हस्तक्षेप किया
  • विरोध का नेतृत्व स्थानीय एक्टिविस्ट ब्रायन तमाकी ने किया
  • भारत और न्यूज़ीलैंड सरकारों के बीच कूटनीतिक संदर्भ भी जुड़े

ऑकलैंड में क्या हुआ था?

शनिवार को न्यूज़ीलैंड के साउथ ऑकलैंड क्षेत्र के मनुरेवा उपनगर में सिख समुदाय द्वारा नगर कीर्तन निकाला जा रहा था। यह धार्मिक जुलूस गुरुद्वारे की ओर बढ़ रहा था, तभी एक स्थानीय समूह ने रास्ता रोककर इसका विरोध किया।
इस विरोध की सबसे खास बात यह रही कि प्रदर्शनकारियों ने माओरी समुदाय के पारंपरिक हाका नृत्य को विरोध के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया। हाका आमतौर पर सांस्कृतिक गौरव, एकता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इस बार इसका उपयोग असहमति जताने के लिए किया गया।

स्थिति तनावपूर्ण होने लगी, जिसके बाद न्यूज़ीलैंड पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा और विरोध कर रहे लोगों को हटाया गया, ताकि मामला हिंसक रूप न ले।

हाका क्या है और इसका विरोध में इस्तेमाल क्यों हुआ?

हाका न्यूज़ीलैंड के मूल निवासी माओरी समुदाय का पारंपरिक नृत्य है, जिसे युद्ध, स्वागत और सामाजिक एकता के प्रतीक के तौर पर किया जाता रहा है।
इस घटना में हाका का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए किया गया कि स्थानीय समुदाय को नगर कीर्तन में दिख रहे कुछ प्रतीकों और नारों से असहमति है। विरोध करने वालों ने इसे सांस्कृतिक चेतावनी और राजनीतिक संदेश के रूप में प्रस्तुत किया।

ब्रायन तमाकी और समर्थकों की आपत्ति क्या है?

इस विरोध का नेतृत्व ब्रायन तमाकी नामक स्थानीय एक्टिविस्ट ने किया। उनका दावा था कि नगर कीर्तन में कुछ ऐसे झंडे और नारे शामिल थे, जो विदेशों से जुड़े राजनीतिक आंदोलनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि जुलूस में खालिस्तान आंदोलन से जुड़े झंडे दिखाए गए, जो न्यूज़ीलैंड की सामाजिक एकता के लिए खतरा हो सकते हैं।

तमाकी ने यह भी कहा कि उनका विरोध सिख धर्म या धार्मिक परंपराओं के खिलाफ नहीं, बल्कि सार्वजनिक धार्मिक आयोजनों में राजनीतिक एजेंडा शामिल किए जाने के खिलाफ है। इसके साथ ही उन्होंने बड़े पैमाने पर आप्रवासन और स्थानीय संस्कृति में घुलने-मिलने की कमी का मुद्दा भी उठाया।

भारत और पंजाब के नेताओं की प्रतिक्रिया

घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए भगवंत सिंह मान ने कहा कि केंद्र सरकार को इस मुद्दे को न्यूज़ीलैंड सरकार के साथ उठाना चाहिए। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन और प्रचार करने का अधिकार है।
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि पंजाबी समुदाय ने दुनिया के कई देशों में मेहनत और योगदान के ज़रिए अपनी पहचान बनाई है।

इसके अलावा सुखबीर सिंह बादल और अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार कुलदीप सिंह गड़गज्ज ने भी इस घटना पर चिंता जताई और धार्मिक स्वतंत्रता के सम्मान की बात कही।

न्यूज़ीलैंड में सिख समुदाय का इतिहास और मौजूदा संदर्भ

न्यूज़ीलैंड में भारतीयों, विशेषकर सिखों का प्रवासन ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की तुलना में अपेक्षाकृत नया है। फिर भी, 2001 से 2023 के बीच न्यूज़ीलैंड में सिखों की संख्या लगभग 5,000 से बढ़कर 53,000 से अधिक हो गई है।
ब्रिटिश प्रशासनिक प्रणाली से परिचय के कारण सिख प्रवासियों को यहां रोज़गार और बसने में मदद मिली।

हालांकि, पश्चिमी देशों में बसे सिख समुदाय के कुछ वर्गों द्वारा खालिस्तान की मांग को जीवित रखने की कोशिशों ने राजनीतिक विवादों को जन्म दिया है। इसी कारण कई देशों में यह मुद्दा आप्रवासन और राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखा जाने लगा है।

भारत–न्यूज़ीलैंड के रिश्तों पर असर?

खालिस्तान से जुड़े मुद्दे भारत सरकार के लिए लंबे समय से चिंता का विषय रहे हैं। मार्च में नरेंद्र मोदी ने न्यूज़ीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन के साथ इस विषय पर चर्चा की थी।
भारत ने स्पष्ट किया था कि वह अलगाववादी और उग्र तत्वों के खिलाफ सहयोग की अपेक्षा रखता है।

 

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