असम करबी आंगलोंग हिंसा: जमीन विवाद से भड़की आग

भूख हड़ताल बनी तात्कालिक कारण, पुराना भूमि संघर्ष फिर उभरा

Virat Bisht
Virat Bisht
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असम करबी आंगलोंग हिंसा: जमीन विवाद की पूरी कहानी

करबी आंगलोंग और वेस्ट करबी आंगलोंग में एक बार फिर हिंसा ने हालात बिगाड़ दिए हैं। मंगलवार को भड़की ताज़ा हिंसा में दो लोगों की मौत हो गई, जबकि कई पुलिसकर्मी समेत दर्जनों लोग घायल हुए हैं।
इस हिंसा की जड़ में जमीन अधिकारों को लेकर लंबे समय से चला आ रहा विवाद और हालिया भूख हड़ताल बताई जा रही है।

मुख्य तथ्य

  • वेस्ट करबी आंगलोंग के खेरोनी इलाके में हिंसा, दो की मौत
  • बाजारों और दुकानों में आगजनी, मोबाइल इंटरनेट बंद
  • PGR और VGR जमीन से “अवैध कब्जे” हटाने की मांग
  • भूख हड़ताल पर बैठे 9 प्रदर्शनकारी बने तात्कालिक कारण
  • करबी आंगलोंग स्वायत्त परिषद के अधिकारों से जुड़ा मामला

हिंसा का तात्कालिक कारण क्या था?

वेस्ट करबी आंगलोंग एक जनजातीय बहुल पहाड़ी जिला है, जो करबी आंगलोंग ऑटोनॉमस काउंसिल (KAAC) के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह इलाका संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष संरक्षण और स्वशासन की व्यवस्था में आता है।
वर्तमान हिंसा का तात्कालिक कारण फेलांगपी इलाके में पिछले दो हफ्तों से चल रही अनशन (भूख हड़ताल) है। यहां नौ लोग आमरण अनशन पर थे, जिनकी मांग थी कि PGR (Professional Grazing Reserve) और VGR (Village Grazing Reserve) की जमीनों से “अतिक्रमणकारियों” को हटाया जाए।

PGR और VGR जमीन विवाद क्यों अहम है?

PGR और VGR ऐसी जमीनें हैं जिन्हें पशुओं के चराई के लिए आरक्षित किया गया था, जिनकी व्यवस्था ब्रिटिश काल से चली आ रही है। इन जमीनों का उद्देश्य पशुपालन पर निर्भर समुदायों को चारा उपलब्ध कराना है।
करबी जनजातीय संगठनों का कहना है कि इन जमीनों पर बाहरी लोग — खासकर बिहारी, बंगाली और नेपाली मूल के परिवार — दशकों से अवैध रूप से बसे हुए हैं। वहीं, बसने वाले लोग दावा करते हैं कि वे यहां लंबे समय से रह रहे हैं और उन्हें हटाया जाना अन्यायपूर्ण है।

भूख हड़ताल से हिंसा तक कैसे पहुंचे हालात?

सोमवार को भूख हड़ताल पर बैठे लोगों को पुलिस ने उनके प्रदर्शन स्थल से हटाकर गुवाहाटी भेज दिया। पुलिस अधिकारियों का कहना था कि यह कदम चिकित्सकीय कारणों से उठाया गया, क्योंकि 15 दिन के अनशन के बाद उनकी हालत बिगड़ सकती थी।
हालांकि, स्थानीय लोगों में यह अफवाह फैल गई कि प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। इसी गलतफहमी ने गुस्से को भड़काया और देखते ही देखते पथराव, आगजनी और हिंसा शुरू हो गई। हालात काबू में लाने के लिए निषेधाज्ञा लगाई गई और इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ीं।

करबी आंगलोंग विवाद का ऐतिहासिक

करबी आंगलोंग और वेस्ट करबी आंगलोंग जैसे जनजातीय इलाकों को छठी अनुसूची के तहत भूमि और प्रशासनिक अधिकार मिले हुए हैं। करबी समुदाय लंबे समय से अपनी पहचान, जमीन और स्वायत्तता को लेकर संवेदनशील रहा है।
1980 के दशक के अंत से यहां करबी उग्रवादी संगठनों की गतिविधियां भी रही हैं, जिनकी शुरुआती मांग अलग राज्य की थी। बाद में इन समूहों ने अधिक स्वायत्तता और KAAC को मजबूत करने की मांग पर सहमति जताई। बाहरी लोगों के प्रति असंतोष इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ है।

पहले भी उठ चुका है यही मुद्दा

फरवरी 2024 में भी इसी मुद्दे को लेकर बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ था। तब KAAC के प्रमुख और BJP नेता तुलिराम रोंगहांग ने आरक्षित चराई भूमि से अतिक्रमण हटाने की घोषणा की थी।
हालांकि, गुवाहाटी हाईकोर्ट में लंबित PIL के कारण उस समय बेदखली की कार्रवाई रोक दी गई थी। यही अधूरा फैसला और लगातार टलती कार्रवाई आज फिर गुस्से और हिंसा की वजह बन गई।

 

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