संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में फ़्रांस, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फ़िलिस्तीन को आधिकारिक तौर पर ‘राज्य’ के रूप में मान्यता दे दी है। इसके साथ ही पुर्तगाल, बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, माल्टा और मोनाको जैसे यूरोपीय देश भी इस सूची में शामिल हो गए हैं। सवाल यह है कि क्या यह मान्यता गाज़ा युद्ध पर कोई असर डालेगी?
मुख्य तथ्य
- फ़्रांस, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता दी।
- यूरोप के कई छोटे देश भी इस क़दम में शामिल हुए।
- इस्राइल ने इसे “आतंकवाद को इनाम” बताते हुए कड़ी आलोचना की।
- अमेरिका और जर्मनी अब भी इस्राइल को हथियार और सैन्य सहायता दे रहे हैं।
- मान्यता से फ़िलिस्तीन को कूटनीतिक ताक़त मिलेगी, लेकिन युद्ध पर असर सीमित है।
गाज़ा युद्ध के बीच फ़्रांस और ब्रिटेन जैसे बड़े देशों ने फ़िलिस्तीन को राज्य मान्यता देकर वैश्विक राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया भी इस पहल में शामिल हो चुके हैं। इसके अलावा पुर्तगाल, एंडोरा, बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, माल्टा और मोनाको जैसे यूरोपीय देशों ने भी अपनी स्वीकृति दी है। हालांकि इस्राइल ने इस कदम को “आतंकवाद का इनाम” बताते हुए सख़्त आपत्ति जताई है।
विश्लेषकों के अनुसार, यह मान्यता फ़िलिस्तीनियों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूत आवाज़ तो देती है, लेकिन गाज़ा युद्ध की दिशा बदलने में फिलहाल इसका कोई तात्कालिक असर नहीं दिखता। इस्राइल लगातार अपने सैन्य अभियान को और तेज कर रहा है और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू साफ़ कर चुके हैं कि “भले ही हमास सभी बंधकों को रिहा कर दे, युद्ध नहीं रुकेगा।”
यूरोप की तरफ़ से मान्यता मिलने के बाद कुछ देशों ने इस्राइल को हथियारों और सैन्य उपकरणों के निर्यात पर सीमित रोक लगाने की कोशिश शुरू की है। लेकिन अमेरिका और जर्मनी अब भी इस्राइल को हथियारों की आपूर्ति जारी रखे हुए हैं। हाल ही में अमेरिकी प्रशासन ने 6.4 अरब डॉलर के अतिरिक्त हथियार सौदों को मंजूरी दी है। इससे साफ़ है कि वैश्विक दबाव के बावजूद इस्राइल को सैन्य स्तर पर बड़ा समर्थन मिल रहा है।
फ़िलिस्तीन राज्य की परिभाषा और चुनौती
1933 की मोंटेवीडियो संधि के अनुसार किसी भी राज्य के लिए चार शर्तें जरूरी होती हैं—परिभाषित भू-भाग, स्थायी जनसंख्या, सरकार और अन्य देशों से संबंध बनाने की क्षमता। फ़िलिस्तीन को मान्यता मिलने से इसका चौथा स्तंभ यानी कूटनीतिक क्षमता मज़बूत हुई है।
लेकिन बाकी स्तंभ अभी बेहद कमजोर हैं। इस्राइल ने वेस्ट बैंक, पूर्वी येरुशलम और गाज़ा पर नियंत्रण कर रखा है। नई बस्तियों और “वेस्ट बैंक के अधिग्रहण” जैसे कदम फ़िलिस्तीन की संप्रभुता को और चुनौती दे रहे हैं। गाज़ा में लाखों लोग भुखमरी और बमबारी का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट तक कह रही है कि इस्राइल की कार्रवाई “जनसंहार” की मंशा दर्शाती है।
इस्राइल पर असर?
हर बार की तरह इस्राइल ने भी इस बढ़ते वैश्विक समर्थन के जवाब में सैन्य कार्रवाई को तेज़ करने की रणनीति अपनाई है। नेतन्याहू ने साफ़ कहा है कि उनके रहते “फ़िलिस्तीन राज्य कभी नहीं बनेगा।” संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत समेत कई देशों ने दो-राज्य समाधान के पक्ष में वोट दिया था, लेकिन इस्राइल ने उसे भी नज़रअंदाज़ कर दिया।
निष्कर्ष यही है कि फ़िलिस्तीन को मान्यता मिलने से उसका वैश्विक कूटनीतिक दायरा बढ़ेगा, लेकिन जब तक अमेरिका और जर्मनी जैसे बड़े खिलाड़ी इस्राइल पर दबाव नहीं डालते, गाज़ा युद्ध और कब्ज़े की नीति पर कोई बड़ा बदलाव संभव नहीं है।


