गणेश चतुर्थी 2025: जानिए इस भव्य त्योहार का महत्व और इतिहास

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गणेश चतुर्थी 2025

लोकमान्य तिलक से लेकर आज तक, गणेशोत्सव कैसे बना भारत का सबसे लोकप्रिय पर्व


मुख्य तथ्य

  • गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है।
  • महाराष्ट्र, खासकर मुंबई और पुणे में सबसे भव्य उत्सव होते हैं।
  • उत्सव की शुरुआत प्राण प्रतिष्ठा और 16-स्तरीय पूजा विधि से होती है।
  • अंतिम दिन गणेश विसर्जन धूमधाम और शोभायात्रा के साथ होता है।
  • लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश काल में इस पर्व को जनआंदोलन का रूप दिया।

गणेश चतुर्थी जिसे विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है, भारत का एक प्रमुख और रंगारंग पर्व है जो भगवान गणेश के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। भगवान गणेश, जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि, समृद्धि व नए आरंभ के देवता माना जाता है, का यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होकर दस दिनों तक चलता है। यह उत्सव प्रायः अगस्त या सितंबर माह में आता है।

भगवान गणेश
भगवान गणेश

गणेश जी के जन्म की कथा

पुराणों के अनुसार, देवी पार्वती ने स्नान के समय अपने द्वार की रक्षा के लिए गणेश जी का निर्माण किया था। जब भगवान शिव लौटे और गणेश ने उन्हें रोक दिया तो वे क्रोधित होकर उनका मस्तक काट बैठे। बाद में, शिव जी ने उन्हें हाथी का सिर लगाकर पुनर्जीवित किया। तभी से गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ और ‘सिद्धिविनायक’ के रूप में पूजा जाने लगा और इस कथा के आधार पर गणेश चतुर्थी पर्व की परंपरा शुरू हुई।

उत्सव की झलक

गणेश चतुर्थी का सबसे भव्य आयोजन महाराष्ट्र में देखने को मिलता है। मुंबई का लालबागचा राजा और पुणे का दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर हर साल लाखों भक्तों का आकर्षण केंद्र बनते हैं। इसके अलावा हैदराबाद, बेंगलुरु, गोवा और तमिलनाडु में भी यह पर्व पूरे जोश और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। संगीत, नृत्य और ढोल-ताशों की गूंज से सड़कों पर उत्सव का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है।

पूजा और परंपराएं

इस दिन घरों में मिट्टी की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। पुजारी प्राण प्रतिष्ठा कर गणपति को अतिथि के रूप में आमंत्रित करते हैं। इसके बाद 16-स्तरीय पूजा की जाती है, जिसमें नारियल, गुड़, मोदक, दूर्वा घास और लाल जास्वंद फूल अर्पित किए जाते हैं। ऋग्वेद, गणपति अथर्वशीर्ष, उपनिषद और गणेश स्तोत्र के मंत्र गाए जाते हैं। प्रतिदिन सुबह-शाम आरती का आयोजन होता है।

भगवान गणेश
भगवान गणेश

अंतिम दिन गणेश विसर्जन का भव्य दृश्य देखने को मिलता है। भक्त ढोल-नगाड़ों और नारों के बीच गणेश जी को जल में विदा करते हैं। मान्यता है कि गणेश जी पृथ्वी पर आकर भक्तों के साथ रहते हैं और विसर्जन के साथ अपने दिव्य लोक लौट जाते हैं।

इतिहास और लोकप्रियता

गणेश चतुर्थी का सार्वजनिक आयोजन पहली बार शिवाजी महाराज के दौर में पुणे में हुआ था। 18वीं शताब्दी में पेशवाओं ने इसे बड़े स्तर पर मनाया, लेकिन ब्रिटिश राज में इसका महत्व घट गया। आज जिस रूप में यह पर्व लोकप्रिय है, उसका श्रेय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को जाता है। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत द्वारा हिंदू सभाओं पर लगाए गए प्रतिबंध का रास्ता निकालते हुए गणेशोत्सव को सार्वजनिक मंच बना दिया। इसी कारण यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी बन गया।

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