अमेरिका में H-1B वीजा पाने वाले विदेशी पेशेवरों के लिए बड़ा झटका आने वाला है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन एक नया प्रस्ताव लाने जा रहा है, जिसके तहत हर H-1B वीजा आवेदन पर $100,000 (करीब 83 लाख रुपये) की फीस देनी होगी। यह अब तक की सबसे बड़ी नीति बदलावों में से एक माना जा रहा है।
मुख्य तथ्य
- H-1B वीजा आवेदन पर $100,000 (₹83 लाख) फीस का प्रस्ताव।
- मौजूदा फीस (₹215 पंजीकरण, ₹780 आवेदन) से कई गुना ज्यादा।
- DOL वेतन मानकों को भी बढ़ाएगा, जिससे नियोक्ताओं पर और बोझ।
- छोटे व्यवसाय और स्टार्टअप्स सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
- नीति कोर्ट में चुनौती का सामना कर सकती है।
H-1B वीजा, जो लंबे समय से अमेरिका की टेक और हेल्थकेयर इंडस्ट्री की रीढ़ रहा है, अब सबसे बड़े बदलावों में से एक से गुजरने वाला है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, डोनाल्ड ट्रंप शुक्रवार को एक प्रोक्लेमेशन पर हस्ताक्षर करने वाले हैं, जिसमें हर H-1B वीजा आवेदन के लिए $100,000 की भारी-भरकम फीस प्रस्तावित की जाएगी।
क्या बदलेगा?
वर्तमान में H-1B के लिए पंजीकरण शुल्क $215 और आवेदन शुल्क $780 है, लेकिन नए प्रस्ताव से नियोक्ताओं को हर आवेदन पर अतिरिक्त $100,000 चुकाना होगा। इसके अलावा, श्रम विभाग (DOL) वेतन मानकों को भी बढ़ाने की तैयारी कर रहा है ताकि विदेशी कर्मचारियों को घरेलू कर्मचारियों से कम वेतन पर काम पर न रखा जाए।
इस कदम का सबसे बड़ा असर उन कंपनियों पर होगा जो हर साल बड़ी संख्या में H-1B आवेदन करती हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई कंपनी 10 कर्मचारियों को H-1B पर स्पॉन्सर करती है, तो उसे सिर्फ फीस पर ही 1 मिलियन डॉलर का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा।
क्यों उठी चिंता?
ट्रंप प्रशासन का दावा है कि यह कदम अमेरिकी कर्मचारियों की सुरक्षा और वेतन स्तर को मजबूत करने के लिए है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इतनी भारी फीस H-1B को “लक्ज़री वर्क परमिट” बना देगी। स्टार्टअप्स और छोटे व्यवसायों के लिए यह लगभग नामुमकिन होगा, जिससे विदेशी टैलेंट अमेरिका आने के बजाय अन्य देशों का रुख करेगा।
बाउंडलेस के CEO ज़ियाओ वांग का कहना है, “अमेरिका ने अपनी तकनीकी लीडरशिप दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टैलेंट को आकर्षित करके बनाई है। लेकिन ऐसी नीतियाँ अमेरिका की इनोवेशन लीडरशिप को कमजोर कर सकती हैं।”
कंपनियों और कर्मचारियों पर असर
- बढ़ी लागत: HR बजट और मुआवज़ा पैकेज को पूरी तरह बदलना होगा।
- लेबर गैप: विदेशी टैलेंट के कम होने से टेक और STEM क्षेत्रों में कमी।
- इनोवेशन पर असर: अंतरराष्ट्रीय सहयोग घटने से तकनीकी विकास धीमा पड़ सकता है।
- वर्कफोर्स रणनीति: कई कंपनियाँ ऑफशोरिंग, ऑटोमेशन और घरेलू अपस्किलिंग की ओर मुड़ सकती हैं।
क्या हैं विकल्प?
विशेषज्ञ मानते हैं कि H-1B महंगा और कठिन होने पर कंपनियाँ और पेशेवर O-1 या EB-1A जैसे वैकल्पिक वीजा विकल्पों की ओर जा सकते हैं, जो असाधारण प्रतिभा वाले लोगों को सीधा ग्रीन कार्ड दिला सकते हैं। हाल ही में EB-1A याचिकाओं में तेजी आई है क्योंकि यह H-1B लॉटरी पर निर्भर नहीं करता।
आगे क्या होगा?
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति को कोर्ट में चुनौती मिलेगी क्योंकि नई वीजा फीस आमतौर पर केवल कांग्रेस के कानून या लंबी पब्लिक नोटिस प्रक्रिया से ही लागू हो सकती है। लेकिन अगर यह लागू होती है, तो यह अमेरिकी रोजगार वीजा नीति का सबसे बड़ा बदलाव होगा, जो न केवल कंपनियों की हायरिंग रणनीति बल्कि अमेरिका की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को भी प्रभावित करेगा।


