H-1B वीज़ा पर एलन मस्क का बयान और ट्रंप का झटका

एलन मस्क ने H-1B को बताया "अमेरिका की ताकत", वहीं ट्रंप ने लगाया $100,000 फीस का नया बोझ।

newsdaynight
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H-1B वीज़ा: एलन मस्क का समर्थन, ट्रंप का बड़ा झटका

टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क ने लंबे समय से H-1B वीज़ा प्रोग्राम का समर्थन किया है। उनका कहना है कि इस वीज़ा ने अमेरिका को दुनिया भर से टैलेंट आकर्षित करने में मदद की। लेकिन इसी बीच राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस वीज़ा की फीस को $100,000 तक बढ़ाने का बड़ा ऐलान कर दिया, जिससे भारतीय टेक वर्कर्स पर गहरा असर पड़ सकता है।

मुख्य तथ्य

  • एलन मस्क ने कहा – “H-1B अमेरिका को मजबूत बनाता है।”
  • टेस्ला पर आरोप – 1,355 वीज़ा वर्कर्स को नौकरी, 6,000 अमेरिकी छंटनी।
  • ट्रंप प्रशासन ने H-1B फीस $100,000 करने का ऐलान किया।
  • भारतीय वर्कर्स पर सीधा असर, 71% H-1B याचिकाओं में भारत की हिस्सेदारी।
  • विशेषज्ञों का कहना – वर्कर्स कनाडा, यूके और खाड़ी देशों की ओर रुख कर सकते हैं।

टेस्ला और स्पेसएक्स के प्रमुख एलन मस्क ने हाल ही में H-1B वीज़ा प्रोग्राम का बचाव करते हुए कहा था कि “H-1B अमेरिका को मजबूत बनाता है।” उन्होंने बताया कि न सिर्फ उनकी बल्कि सैकड़ों सफल कंपनियों की सफलता में विदेशी टैलेंट की अहम भूमिका रही है। मस्क का यह बयान उस समय आया जब अमेरिका में H-1B वीज़ा पर बहस तेज हो गई है।

लेकिन इसी बीच, 12 सितंबर 2025 को टेस्ला पर मुकदमा दायर हुआ, जिसमें कंपनी पर आरोप लगाया गया कि उसने अमेरिकी नागरिकों की तुलना में H-1B वर्कर्स को प्राथमिकता दी। शिकायत के मुताबिक, टेस्ला ने 1,355 वीज़ा वर्कर्स को नौकरी दी जबकि 6,000 से ज्यादा घरेलू कर्मचारियों की छंटनी की। आरोप लगाया गया कि कंपनियां अक्सर वीज़ा कर्मचारियों को कम वेतन पर काम पर रखती हैं, जिसे “वेज़ थेफ्ट” कहा जाता है।

स्थिति और जटिल हो गई जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि अब कंपनियों को प्रत्येक H-1B कर्मचारी के लिए $100,000 फीस चुकानी होगी। यह नया नियम 21 सितंबर 2025 से लागू होगा और फिलहाल 12 महीने तक प्रभावी रहेगा। ट्रंप का कहना है कि इससे अमेरिकी कंपनियां स्थानीय टैलेंट को प्राथमिकता देंगी और “कम मूल्य वाले विदेशी कर्मचारी” बाहर हो जाएंगे। उन्होंने H-1B को “सिस्टमेटिक एब्यूज” और “राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा” तक बताया।

इस फैसले का सबसे बड़ा असर भारतीय वर्कर्स पर पड़ेगा। इमिग्रेशन वकील सोफी एल्कॉर्न का कहना है कि यह कदम “नौकरी की गतिशीलता कम करेगा और नवीनीकरण महंगे बना देगा।” भारतीय टेक वर्कर्स, जो पहले से अमेरिकी बाजार का बड़ा हिस्सा हैं, अब कनाडा, ब्रिटेन, यूएई और सऊदी अरब जैसे देशों की ओर रुख कर सकते हैं।

आंकड़ों की मानें तो वित्त वर्ष 2024 में 71% H-1B वीज़ा भारतीय नागरिकों को मिले थे और इनमें से 64% कंप्यूटर-संबंधी पेशों में थे। इन वर्कर्स का औसत वेतन करीब $120,000 था। ऐसे में ट्रंप की नई पॉलिसी अमेरिका की टेक इंडस्ट्री और भारतीय पेशेवरों, दोनों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है।

 

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