25% अतिरिक्त शुल्क से नाराजगी; विशेषज्ञों का मानना, रूस पर दबाव बनाने की अमेरिकी रणनीति में भारत सबसे ज्यादा नुकसान झेल रहा है।
मुख्य तथ्य
- अमेरिका ने भारत पर ऊर्जा आयात को लेकर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया।
- जयशंकर ने कहा – अमेरिकी खुद चाहते थे कि भारत रूसी तेल खरीदे।
- विशेषज्ञों का मानना – रूस को कमजोर करने की रणनीति में भारत “सॉफ्ट टारगेट” बना।
- अमेरिका ने भारत पर “सस्ते रूसी तेल से मुनाफाखोरी” का आरोप लगाया।
- चीन को इससे अधिक लाभ मिलने की संभावना, भारत पर दबाव बढ़ा।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका द्वारा भारत पर ऊर्जा आयात को लेकर लगाए गए 25% अतिरिक्त शुल्क पर आश्चर्य जताया है। उनका कहना है कि यह वही अमेरिका था जिसने भारत से कहा था कि “दुनिया के ऊर्जा बाज़ारों को स्थिर करने के लिए हमें रूस से तेल खरीदना चाहिए।” लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि नई दिल्ली की नीति-निर्माण मंडलियों में यह अहसास गहरा रहा है कि भारत शायद अमेरिका की रणनीति का “सॉफ्ट टारगेट” बन गया है।
रूस पर दबाव की अमेरिकी चाल
विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका की रणनीति रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करने की है। विश्लेषक डेविड वू, जो पहले बैंक ऑफ अमेरिका में वैश्विक रिसर्च हेड रह चुके हैं, का कहना है कि रूस की कमाई रोकना ही वॉशिंगटन के लिए सबसे आसान और सस्ता तरीका माना गया। लेकिन इस खेल में भारत को खामियाजा भुगतना पड़ा है। वहीं, चीन को दबाव में लाने का विकल्प अमेरिका ने खुला ही नहीं छोड़ा।
अमेरिका के आरोप
जयशंकर ने यह बयान मॉस्को में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ साझा मंच पर दिया। इससे एक दिन पहले अमेरिकी ट्रेज़री सेक्रेटरी स्कॉट बेस्सेट ने भारत पर आरोप लगाया था कि वह रूस से सस्ता तेल खरीदकर मुनाफाखोरी कर रहा है। उन्होंने इसे “इंडियन आर्बिट्राज” कहा और दावा किया कि इसका फायदा भारत के सबसे अमीर परिवारों को हो रहा है।
चीन का गले लगाना और भारत की दुविधा
नई दिल्ली के रणनीतिकार इसे “गेम थ्योरी” की स्थिति से जोड़ रहे हैं—कभी “प्रिज़नर्स डिलेमा” तो कभी “गेम ऑफ चिकन।” इसके साथ ही चीन का अचानक भारत के करीब आना भी एक तरह का “हॉब्सन्स च्वॉइस” है, यानी दिखने को विकल्प हैं लेकिन असल में कोई विकल्प नहीं। हाल ही में एक भारतीय जनरल ने भी कहा था कि चीन पाकिस्तान को “उधारी की तलवार” बनाकर भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है।
चीन को फायदा, भारत पर दबाव
अमेरिकी टैरिफ़ नीति का फायदा चीन को मिल रहा है। 27 अगस्त से लागू होने वाले सेकेंडरी टैरिफ्स के बाद भारत और ज्यादा दबाव में आ जाएगा, जबकि चीन अमेरिका से बेहतर शर्तें हासिल कर सकता है। नतीजतन भारत, ब्राज़ील, म्यांमार और स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों की कतार में खड़ा दिख रहा है, जिन्हें भारी शुल्क का सामना करना पड़ रहा है।
निष्कर्ष
ट्रंप प्रशासन की आक्रामक नीति ने भारत-अमेरिका के तीन दशक पुराने आर्थिक रिश्तों को झटका दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह असर इतना गहरा हो सकता है कि ट्रंप के बाद की सरकारों को भी सालों लग सकते हैं भारत-अमेरिका रिश्ते को फिर उसी स्तर पर लाने में।