इज़रायल-फिलिस्तीन शांति योजना फिर संकट में

बंधक अदला-बदली के बाद भी शांति की राह कठिन — ट्रम्प की 20-सूत्रीय योजना पर अनिश्चितता, नेतन्याहू और हमास की मंशा पर सवाल।

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इज़रायल-फिलिस्तीन शांति योजना संकट में

मिस्र के शर्म अल-शेख में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता से शुरू हुई इज़रायल-फिलिस्तीन शांति प्रक्रिया अब कठिन दौर में प्रवेश कर चुकी है। बंधक अदला-बदली ने उम्मीद तो जगाई, लेकिन आगे का रास्ता राजनीतिक असहमति, अविश्वास और सत्ता संघर्ष से भरा है।

मुख्य तथ्य

  • ट्रम्प ने गाज़ा युद्ध को “समाप्त” घोषित करते हुए शांति सम्मेलन में भाग लिया।
  • इज़रायल ने 2,000 फिलिस्तीनी बंदियों की रिहाई पर सहमति जताई।
  • हमास ने 20 जीवित बंधकों और 28 शवों को सौंपने की घोषणा की।
  • शांति योजना के 20 बिंदुओं में असल चुनौती है गाज़ा का पुनर्निर्माण और शासन।
  • नेतन्याहू और ट्रम्प दोनों की मंशा पर अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने सवाल उठाए हैं।

मध्य पूर्व में दशकों से जारी इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के बीच मिस्र के शर्म अल-शेख सम्मेलन को उम्मीद की किरण के रूप में देखा जा रहा था।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इसे “गाज़ा युद्ध का अंत” बताया और इसे अपने 20-बिंदु शांति योजना की पहली सफलता कहा। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि बंधकों की अदला-बदली तो आसान हिस्सा था — असली परीक्षा अब शुरू होती है।

बंधक अदला-बदली: उम्मीद की शुरुआत या दिखावा?

समझौते के तहत इज़रायल ने लगभग 2,000 फिलिस्तीनी बंदियों को रिहा करने की घोषणा की, जबकि हमास ने 20 जीवित बंधकों और 28 शवों को रेड क्रॉस को सौंपा। यह मानवीय दृष्टि से बड़ी प्रगति मानी जा रही है, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से इसे महज एक प्रतीकात्मक कदम बताया जा रहा है।

अब सवाल यह है कि क्या यह युद्धविराम टिकेगा? गाज़ा की पुनर्निर्माण योजना और युद्धोत्तर शासन व्यवस्था को लेकर अब तक कोई ठोस समझौता नहीं हुआ है।
हमास की ताकत खत्म हो चुकी है, लेकिन गाज़ा पर शासन कौन करेगा — यह अभी भी अनुत्तरित प्रश्न है।

ट्रम्प की 20-बिंदु योजना और वास्तविक चुनौतियाँ

बंधक अदला-बदली ट्रम्प की योजना का पहला चरण भर था।
इसके बाद आने वाले बिंदुओं में सबसे कठिन कार्य हैं — हमास का निरस्त्रीकरण, गाज़ा की सुरक्षा की गारंटी, और खंडहर बने इलाकों का पुनर्निर्माण
ट्रम्प की योजना में फिलिस्तीनी राज्य की अस्पष्ट चर्चा है, पर कोई ठोस प्रतिबद्धता नहीं।
कई विश्लेषक इसे “एकतरफा प्रदर्शन” बताते हैं, जिसमें फिलिस्तीनी नेतृत्व की कोई भूमिका नहीं दी गई।

वॉशिंगटन डीसी स्थित फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज के वरिष्ठ फेलो जोनाथन कॉनिकस के अनुसार, “यदि हमास ने हथियार नहीं डाले, तो यह सिर्फ अस्थायी युद्धविराम है।”
उसी समय, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नादेर हाशमी ने चेताया कि “सम्मेलन खत्म होने के बाद स्थिति वहीं लौट सकती है, जहाँ से शुरू हुई थी।”

नेतन्याहू और ट्रम्प की अलग-अलग प्राथमिकताएँ

शांति प्रक्रिया की दूसरी बड़ी जटिलता है राजनीतिक मंशा
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमेशा से ट्रम्प को “व्हाइट हाउस में इज़रायल का सबसे अच्छा मित्र” कहा है, लेकिन मौजूदा हालात में वे इस योजना के सफल होने के इच्छुक नहीं दिखते।
इस लंबे युद्ध ने नेतन्याहू को घरेलू राजनीतिक संकटों — भ्रष्टाचार मामलों और न्यायपालिका से टकराव — से राहत दी है।
स्थायी युद्धविराम का अर्थ होगा कि उन पर फिर से जवाबदेही तय हो सकती है।

ट्रम्प के लिए भी यह शांति योजना अब उतनी प्राथमिकता में नहीं दिखती।
रिपोर्टों के अनुसार, नोबेल शांति पुरस्कार न मिलने से वे निराश हैं और अब इस मुद्दे में समय लगाने के इच्छुक नहीं।
उनकी “20-पॉइंट” योजना का दूसरा और तीसरा चरण — गाज़ा की सुरक्षा व्यवस्था और अरब देशों की अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल की तैनाती — अब भी ठंडे बस्ते में है।

गाज़ा का भविष्य: सबसे बड़ा प्रश्न

सबसे बड़ा सवाल यही है — गाज़ा पर शासन करेगा कौन?
यदि हमास और फिलिस्तीनी अथॉरिटी दोनों को ही बाहर रखा गया, तो यह इलाका कौन संभालेगा?
ट्रम्प की योजना में अरब और मुस्लिम देशों की सुरक्षा बलों की बात है, लेकिन जब तक हमास निरस्त्रीकरण पर सहमत नहीं होता, यह व्यावहारिक नहीं लगता।

मूल समस्या — इज़रायल द्वारा फिलिस्तीनी क्षेत्रों का कब्ज़ा — को ट्रम्प की योजना में लगभग नजरअंदाज़ किया गया है।
इससे यह पहल स्थायी समाधान के बजाय एक अस्थायी विराम जैसी लगती है।

निष्कर्ष

शर्म अल-शेख सम्मेलन ने जो उम्मीदें जगाई थीं, वे अब धुंधली पड़ती दिख रही हैं।
ट्रम्प और नेतन्याहू दोनों के लिए यह पहल राजनीतिक रूप से सुविधाजनक अवसर तो हो सकती है, पर एक स्थायी शांति का रास्ता अब भी दूर है।
फिलिस्तीनियों की अनुपस्थिति इस शांति योजना की सबसे बड़ी कमी है — और जब तक यह स्थिति नहीं बदलती, मध्य पूर्व में अस्थिरता बनी रहेगी।

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