लौटने की राह

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लौटने की राह

हम सब इस जीवन के पथिक हैं,
थोड़ी देर ठहरने वाले मुसाफ़िर,
आख़िरकार लौटने वाले
अपने ही घर की ओर।

अंत में यह शरीर थक जाएगा,
और हमारे नाम को पुकारने वाली आवाज़ें भी
धीरे-धीरे ख़ामोश हो जाएँगी।

समय धीरे-धीरे ढक देता है—
चेहरे, आवाज़ें, यहाँ तक कि वो छुअन भी
जो कभी हमें जिंदा रखती थी।

पर जो बचा रह जाता है,
वह प्रेम है।
जो तुम्हें त्याग की कठोरता सिखाता है,
वही प्रेम है।
जो अंधकार की गहराइयों में भी
राह दिखा देता है,
वही प्रेम है।

शायद यही यात्रा का रहस्य है—
घर पहुँचना कहीं बाहर नहीं,
बल्कि भीतर लौटना है,
जहाँ हम पहली बार समझ पाए थे
कि प्रेम ही ठिकाना है।

–  Vivek Balodi

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