उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के एक छोटे से गांव से निकलकर प्रशांत वीर ने ऐसा इतिहास रच दिया है, जो हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया है।
जहां पिता एक प्राथमिक शिक्षक के रूप में करीब ₹12,000 मासिक वेतन पर परिवार चला रहे थे, वहीं बेटे को आईपीएल मिनी नीलामी में चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) ने ₹14.20 करोड़ में खरीद लिया।
मुख्य तथ्य
- प्रशांत वीर को CSK ने ₹14.20 करोड़ में खरीदा
- पिता प्राथमिक शिक्षक, सीमित आय में पली मेहनत
- बाएं हाथ के बल्लेबाज़ और स्पिन गेंदबाज़
- रवींद्र जडेजा जैसे ऑल-राउंडर की जगह माने जा रहे
- एमएस धोनी के मार्गदर्शन में खेलने का सपना पूरा
₹12,000 की नौकरी से करोड़ों तक का सफर
20 वर्षीय प्रशांत वीर की कहानी साधारण नहीं, बल्कि संघर्ष, धैर्य और सही मार्गदर्शन की मिसाल है। उनके पिता एक शिक्षा मित्र (प्राथमिक शिक्षक) रहे हैं, जिनकी आमदनी कभी ₹8,000–12,000 रुपये महीना रही। ऐसे हालात में बेटे का क्रिकेट खेलना आसान नहीं था। प्रशांत बताते हैं कि उन्होंने कभी बड़े सपने देखने से खुद को नहीं रोका, लेकिन उम्मीद बस इतनी थी कि नीलामी में कोई टीम उनका नाम पुकार ले।
नीलामी का वो पल जिसने सब बदल दिया
आईपीएल मिनी ऑक्शन के दिन जब CSK ने उन पर बोली लगानी शुरू की, तो प्रशांत को यकीन ही नहीं हुआ। उन्होंने कहा, “सब सपना लग रहा था। मैंने रिंकू भाई से कहा, एक बार चुटकी काट लो। मेरे घर ने इतनी बड़ी रकम कभी देखी नहीं थी। यह पैसा हमारे जीवन को बेहतर बनाएगा।” प्रशांत ने साफ कहा कि पैसों का इस्तेमाल कैसे होगा, इसका फैसला परिवार करेगा — उनका ध्यान सिर्फ क्रिकेट पर है।

एमएस धोनी के साथ खेलने का सपना
प्रशांत वीर हमेशा से चेन्नई सुपर किंग्स के लिए खेलना चाहते थे, खासकर एमएस धोनी की कप्तानी में। वह निचले क्रम में बल्लेबाज़ी करते हैं, ठीक उसी तरह जैसे धोनी करते रहे हैं। बाएं हाथ से बल्लेबाज़ी और स्पिन गेंदबाज़ी के कारण उन्हें रवींद्र जडेजा जैसा खिलाड़ी माना जा रहा है। प्रशांत मानते हैं कि धोनी जैसे खिलाड़ी से सीखना उनके करियर की सबसे बड़ी पूंजी होगी।
अमेठी से सहारनपुर तक का कठिन रास्ता
प्रशांत का गांव शाहजीपुर, अमेठी से करीब 13 किलोमीटर दूर है। उन्होंने लखनऊ या कानपुर का रास्ता नहीं चुना, बल्कि सहारनपुर जाकर क्रिकेट खेलने का फैसला किया। उनके कोच राजीव गोयल बताते हैं कि जब प्रशांत पहली बार अकादमी पहुंचे, तो उनकी टाइमिंग अलग ही स्तर की थी।आर्थिक परेशानियों के कारण एक समय प्रशांत ने क्रिकेट छोड़ने तक की बात कह दी थी, लेकिन कोच और स्थानीय क्रिकेट अधिकारियों ने उन्हें संभाला।
दादा की पेंशन और मददगारों का सहारा
प्रशांत के दिवंगत दादा की पेंशन से उनकी क्रिकेट ट्रेनिंग चलती थी। पिता की सीमित आय में यह सपना भारी पड़ रहा था। दादा के निधन के बाद हालात और मुश्किल हो गए, लेकिन कोच गोयल और जिला क्रिकेट संघ के अधिकारियों ने भरोसा दिलाया कि वह सिर्फ क्रिकेट पर ध्यान दें। यही भरोसा आज करोड़ों की पहचान में बदल चुका है।
संघर्ष के बाद मिला मंच
शुरुआत में उत्तर प्रदेश की अंडर-16 टीम में चयन नहीं हुआ। निराशा जरूर हुई, लेकिन हार नहीं मानी। चंडीगढ़ और जालंधर में पढ़ाई के साथ क्रिकेट जारी रखा। इसके बाद अंडर-19 टीम में जगह मिली और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी मेहनत, अनुशासन और मैदान पर सबसे पहले पहुंचने की आदत ने उन्हें दूसरों से अलग बनाया।
पैसे को लेकर समझदार सोच
प्रशांत वीर को पैसों का मूल्य पता है। पहले जो भी कमाई हुई, उससे उन्होंने पिता के लिए छोटा सा व्यवसाय शुरू कराया और घर में जरूरी सुधार किए।
कोच मानते हैं कि पैसा प्रशांत को नहीं बदलेगा, क्योंकि उन्होंने अभाव में रहकर उसकी कीमत समझी है।


