रोहित आर्य केस: क्यों बने 17 बच्चों के बंधक संकट का कारण?

पूर्व बैंकर से फिल्ममेकर बने रोहित आर्य की मौत ने महाराष्ट्र सरकार और उसके ‘स्वच्छता मॉनिटर’ प्रोजेक्ट पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

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रोहित आर्य केस: क्यों बने 17 बच्चों के बंधक संकट का कारण

मुंबई के पवई में हुए बंधक कांड में मारे गए रोहित आर्य का विवाद केवल एक अपराध की कहानी नहीं है — बल्कि यह सरकारी परियोजनाओं, भ्रष्टाचार के आरोपों और एक व्यक्ति के टूटे विश्वास की कहानी है। आर्य ने बच्चों को बंधक बनाने से पहले कई महीनों तक महाराष्ट्र शिक्षा विभाग के खिलाफ संघर्ष किया था।

मुख्य तथ्य

  • रोहित आर्य ने 2013 में ‘लेट्स चेंज’ नामक स्वच्छता अभियान शुरू किया था।
  • 2022 में उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के साथ ‘स्वच्छता मॉनिटर’ प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया।
  • सरकार ने ₹9.9 लाख की मंजूरी दी, लेकिन ₹2 करोड़ की राशि विवाद में फंस गई।
  • आर्य ने बाद में अपने खर्च पर अभियान जारी रखा और फीस वसूली के आरोप लगे।
  • फंडिंग विवाद और उपेक्षा से आहत होकर उन्होंने कई विरोध प्रदर्शन किए।

मुंबई के पवई में गुरुवार को हुए बंधक कांड में मारे गए फिल्ममेकर और सामाजिक कार्यकर्ता रोहित आर्य की कहानी जितनी दुखद है, उतनी ही जटिल भी। कभी बैंकिंग सेक्टर में काम करने वाले आर्य ने 2013 में “लेट्स चेंज” नामक परियोजना शुरू की थी, जिसका उद्देश्य था समाज में सफाई और व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता पर जागरूकता फैलाना।

‘लेट्स चेंज’ से ‘स्वच्छता मॉनिटर’ तक की यात्रा

रोहित आर्य ने 2013 में “लेट्स चेंज” नामक फिल्म बनाई थी, जो गांधी जयंती से सरदार पटेल जयंती तक चलने वाले अभियान पर आधारित थी। यह फिल्म महाराष्ट्र और गुजरात के स्कूलों में दिखाई गई और बच्चों को सफाई अभियान में भाग लेने के लिए प्रेरित किया गया। इसके बाद आर्य ने ‘स्वच्छता मॉनिटर’ की अवधारणा शुरू की, जिसके तहत छात्रों को “स्वच्छता दूत” के रूप में नियुक्त किया गया ताकि वे अपने स्कूल और मोहल्ले में सफाई पर निगरानी रख सकें।

2022 में आर्य ने महाराष्ट्र शिक्षा विभाग से इस प्रोजेक्ट को सरकारी स्तर पर लागू करने की अनुमति ली। पहले चरण में उन्होंने अपने खर्च पर प्रोजेक्ट चलाया और 2023 में इसका विस्तार प्रस्तावित किया। सरकार ने ₹9.9 लाख की राशि जारी कर दी और लगभग 64,000 स्कूलों व 59 लाख छात्रों ने इसमें हिस्सा लिया।

विवाद की शुरुआत और सरकारी ठहराव

2024 की शुरुआत में जब ‘स्वच्छता मॉनिटर’ को ‘माझी शाला सुंदर शाला’ कार्यक्रम में शामिल किया गया, तो आर्य को दूसरे चरण के लिए ₹2 करोड़ की राशि का वादा किया गया। लेकिन आर्य के अनुसार, यह फंड कभी जारी नहीं हुआ।
विभाग का कहना था कि आर्य ने “अपूर्ण प्रस्ताव” जमा किया और कुछ स्कूलों से बिना अनुमति ₹500 की पंजीकरण फीस वसूली की। इसी कारण विभाग ने अगस्त 2024 में उन्हें नोटिस भेजा और कहा कि जब तक वे स्कूलों से वसूली गई राशि जमा नहीं करते, आगे की कार्रवाई नहीं की जाएगी।

विरोध, भूख हड़ताल और संघर्ष के दिन

फंडिंग रोकने के विरोध में आर्य ने पुणे और मुंबई में कई धरने और भूख हड़तालें कीं। उन्होंने शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर से मुलाकात की, जिन्होंने मानवीय दृष्टिकोण से उन्हें निजी चेक भी दिया। लेकिन आर्य का आरोप था कि विभाग उनके कॉन्सेप्ट को “छीनकर” अपने नाम से चला रहा है और उन्हें जानबूझकर दरकिनार किया जा रहा है।

अक्टूबर 2024 में मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा था, “मैंने इस प्रोजेक्ट को देशभर में बच्चों के व्यवहार में बदलाव लाने के लिए बनाया था, लेकिन अब इसे भ्रष्टाचार से ग्रसित कर दिया गया है।”

बंधक कांड और मौत के बाद सवाल

सितंबर 2025 में जब आर्य ने 17 बच्चों को बंधक बनाया, तो पुलिस कार्रवाई में उनकी मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया। उनके साथ क्या हुआ — यह अब सरकारी सिस्टम की पारदर्शिता, निजी एजेंसियों की भूमिका और स्कूलों पर पड़ते गैर-शैक्षणिक बोझ पर बहस को जन्म दे गया है।
शिक्षकों का कहना है कि “ऐसी कई योजनाएं हैं जिनमें निजी संस्थाएं शामिल हैं, लेकिन उनकी पारदर्शिता संदिग्ध है।”

आर्य की मौत अब इस सवाल को उठाती है — क्या सरकारी सिस्टम में निजी सामाजिक पहल के लिए कोई स्थान बचा है, या वे केवल राजनीति और प्रक्रियाओं में खो जाती हैं?

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