वाणिज्य मंत्रालय कर रहा विकल्पों पर मंथन, निर्यातकों ने MEIS जैसी योजना की मांग उठाई
मुख्य तथ्य
- अमेरिका ने बुधवार से भारतीय निर्यात पर 50% टैरिफ लागू किया।
- उद्योग को शॉर्ट-टर्म लिक्विडिटी क्रंच की चिंता।
- सरकार सब्सिडी नहीं, बल्कि दीर्घकालिक लाभकारी राहत उपायों पर विचार कर रही।
- FIEO प्रतिनिधिमंडल ने वित्त मंत्री से मुलाकात कर तात्कालिक कदम उठाने की मांग की।
- निर्यातकों ने MEIS जैसी योजना फिर से लागू करने का सुझाव दिया।
अमेरिका द्वारा भारतीय वस्त्र, रसायन और अन्य निर्यातों पर 50% टैरिफ लगाने के बाद, उद्योग जगत शॉर्ट-टर्म लिक्विडिटी क्रंच से जूझ रहा है। इसे देखते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय राहत उपायों पर विचार कर रहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने गुरुवार को बताया कि सरकार ऐसे कदमों की समीक्षा कर रही है, जो उद्योग को चलने में मदद करें, लेकिन यह किसी सीधे सब्सिडी के रूप में नहीं होंगे।
अधिकारी ने कहा, “उद्योग का कहना है कि ऑर्डर कम होने से निकट भविष्य में नकदी की समस्या होगी। कई कंपनियां पूरी तरह अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं और वस्त्र, रसायन जैसे क्षेत्रों में कठिनाई बढ़ सकती है। सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से देख रही है और सकारात्मक काम चल रहा है।”
राहत पैकेज पर मंथन
अधिकारियों के अनुसार, सरकार एक ऐसा राहत पैकेज तैयार करने पर विचार कर रही है जो अल्पकालिक मदद के साथ-साथ दीर्घकालिक समाधान भी दे सके। अधिकारी ने कहा, “हम पैकेज की घोषणा कर सकते हैं, लेकिन अगर ऑफटेक अच्छा नहीं होगा तो वह सफल नहीं होगा। इसलिए उपायों को बहुत सावधानी से देखा जा रहा है।”
FIEO की अपील
इसी बीच, फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस (FIEO) का एक प्रतिनिधिमंडल गुरुवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मिला। संगठन के अध्यक्ष एस. सी. रल्हन ने कहा कि बढ़े हुए अमेरिकी टैरिफ ने भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा और रोजगार सृजन की क्षमता पर गंभीर असर डाला है। उन्होंने सरकार से त्वरित और संतुलित नीतिगत कदम उठाने की मांग की।
FIEO के बयान के अनुसार, वित्त मंत्री ने आश्वासन दिया कि सरकार इस कठिन समय में निर्यातकों के साथ खड़ी है।
MEIS जैसी योजना की मांग
उद्योग से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सरकार से Merchandise Exports from India Scheme (MEIS) जैसी योजना दोबारा शुरू करने की मांग की गई है। यह योजना WTO नियमों के अनुरूप न होने के चलते बंद कर दी गई थी। लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए उद्योग का मानना है कि WTO लगभग अप्रभावी है और ऐसी योजना अल्पकालिक समाधान साबित हो सकती है।
प्रस्ताव के अनुसार, उद्योग और सरकार दोनों 15-15% का टैरिफ झेलें ताकि प्रभावी शुल्क दर घटकर 20% रह जाए, जो अन्य देशों के मुकाबले प्रतिस्पर्धी स्तर होगा।
अमेरिका के साथ वार्ता पर असर
वरिष्ठ अधिकारी ने यह भी कहा कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौते की वार्ता स्थगित जरूर हुई है, लेकिन संवाद जारी है। फिलहाल 25% अतिरिक्त तेल लेवी का मुद्दा हल किए बिना समझौते की दिशा में आगे बढ़ना संभव नहीं है।
उन्होंने कहा, “यह स्थिति निर्यातकों और उद्योग दोनों के लिए एक वेक-अप कॉल है। हम निर्यात और आयात दोनों में कुछ भौगोलिक क्षेत्रों पर ज्यादा निर्भर हैं। अब समय है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को विविध बनाया जाए।”