झूठ है

newsdaynight
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तन्हाई में भी अपनी एक रौशनी होती है।

झूठ है

अगर कोई तुमसे कहे — “मैं तुम्हारा दर्द जानता हूँ”
तो यह झूठ है।
दर्द वही समझ सकता है,
जिसकी रूह ने उसे महसूस किया हो,
जिसके घावों ने उसे छुआ हो,
और जिसकी आँखों ने नींद खोकर रातें काटी हों।

अगर कोई तुमसे कहे — “मैं तुम्हारा और उसका रिश्ता समझ सकता हूँ”
तो यह भी झूठ है।
रिश्तों की परछाइयाँ बाहर से दिखाई देती हैं,
पर उनकी गहराई, उनका सम्मान,
उनमें बसा अपनापन, वो छोटी-छोटी यादें,
वो अनकहे शब्द, वो चुप रहने के वक़्त की समझ —
सिर्फ तुम दोनों जानते हो,
सिर्फ तुम दोनों महसूस कर सकते हो।

बाकी सब…
बस झूठ है।

Vivek Balodi

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